शनिवार, 31 मई 2014

तरकश, 1जून

तरकश


तकरार

धान को खपाने के चक्कर में एक सिकरेट्री और एक कलेक्टर में चार दिन पहले जमकर तकरार हो गई। असल में, संग्रहण केंद्रों से उठाव न होने से 2011-12 का 500 करोड़ और 2012-13 का 800 करोड़ का धान अब सड़ने लगा है। मंत्रालय के एक सिकरेट्री ने अपना दामन बचाने के लिए नायाब नुख्सा निकाला और कलेक्टरों को मौखिक फारमान जारी कर दिया कि राईस मिलरों को 20 फीसदी अतिरिक्त धान दिया जाए। याने कोई 80 क्विंटल धान खरीदता है, तो 20 क्विंटल मुफ्त में दे दो। और, उसे शार्टेज में शो कर दो। जबकि, भारत सरकार के नार्म के अनुसार दो फीसदी से अधिक शार्टेज हो नहीं सकता। धमतरी और महासमंुद जैसे कुछ जिलों ने तो 20 फीसदी एक्सट्रा धान देना भी चालू कर दिया। लेकिन, एक बड़े जिले के हाईप्रोफाइल कलेक्टर ने सिकरेट्री का गलत निर्देश मानने से साफ इंकार कर दिया। उन्होंने कहा, सीबीआई जांच होगी, तो फंसेंगे हम….आप लिखित में आदेश दीजिए। इसको लेकर दोनों में जमकर बहस हो गई। कलेक्टर लेकिन टस-से-मस नहीं हुए। बताते हैं, सिकरेट्री को बाहर जाना है। और, धान पड़ा रह गया तो सरकार रिलीव नहीं करने वाली। सो, उन्होंने अपने रिपोर्ट कार्ड के लिए यह शार्ट कट रास्ता निकाला। वैसे, सिकरेट्री की इस करतूत की खबर चीफ सिकरेट्री विवेक ढांड को मिल गई है और ढांड ने इसको लेकर उन्हें जमकर फटकारा है। बहरहाल, कलेक्टर के अड़ने से सरकार का 200 करोड़ से अधिक का धान राईस मिलरों को खैरात में देने से बच गया।

रास्ता ब्लाक

विष्णु देव साय के केंद्रीय मंत्री बनने से न केवल रमेश बैस का रास्ता ब्लाक हो गया बल्कि, छत्तीसगढ़ बीजेपी के सेकेंड लाइन के नेताओं के लिए भी आगे जाने का रास्ता बंद ही समझिए। सरल और सहज होने के साथ ही साय की उम्र भी कम है। छबि भी निर्विवाद है। ना ही कभी आदिवासी एक्सप्रेस वगैरह के चक्कर में पड़े। सबसे अहम यह कि मुख्यमंत्री डा0 रमन सिंह के बेहद नजदीक एवं विश्वस्त हैं। डाक्टर साहब ने ही उन्हें दोबारा बीजेपी प्रेसिडेंट बनवाया था। जाहिर है, भविष्य मंे कभी जरूरत पड़ी तो वे साय पर ही भरोसा करना मुनासिब समझेंगे। ऐसे में, कुछ मंत्रियों की चिंता लाजिमी है।

छोटी लिस्ट

नौकरशाहों के ट्रांसफर के लंबी-चैड़ी सूची निकालने की बजाए सरकार अब छोटी-छोटी लिस्ट जारी कर रही है। आपने देखा ही, पहले कलेक्टर के तौर पर ओपी चैधरी का सिंगल आर्डर निकला। फिर, तीन जिलों का। उच्चाधिकारियों की मानें तो बड़ी सूची तैयार करने में समय लगता है, इसलिए वह टलता जाता है। छोटी में जब समय मिले, दो-दो, तीन-तीन को निकालना ज्यादा आसान होता है।

उल्टा-पुल्टा

कलेक्टरों के ट्रांसफर में उल्टा-पुल्टा भी हुआ। कांकेर कलेक्टर ममगई डी का ट्रांसफर होना तय था और सूत्रांे की मानें तो वे इसके लिए मेंटली प्रिपेयर्ड थीं। वैसे, दो साल उनका हो भी गया था। लेकिन, विकेट उड़ गया उनके पति याने अंबलगन पी का। अंबलगन को जांजगीर का कलेक्टर बनें मुश्किल से आठ महीने ही हुए थे। उन्हें जीरम घाटी नक्सली हमले के बाद मई एंड मंे बस्तर कलेक्टर से हटाया गया था। और, सितंबर में उन्हें जांजगीर की कमान सौंपी गई थी। अंबलगन के विरोधियों को भी अंदेशा नहीं होगा कि वे इतना जल्द कलेक्टरी से रुखसत हो जाएंगे। वैसे, कलेक्टरी की मजबूत दावेदारी अबकी श्रुति सिंह और शम्मी आबिदी की भी रही। मगर अब सेकेंड लिस्ट में ही इनका नम्बर लगे।

रिवार्ड

संगीता आर दूसरी महिला कलेक्टर होंगी, जिन्हें एक जिले से दूसरे और बड़े जिले में कलेक्टर बनाकर भेजा गया है। इससे पहले, ममगई डी को महासमुंद से कांकेर भेजा गया था और अब, संगीता को महासमुंद से दुर्ग का कलेक्टर बनाया गया है। दुर्ग बोले तो सूबे का सबसे बड़ा जिला। बालोद और बेमेतरा जिला बनने के बाद भी दुर्ग का वजन अभी कम नहीं हुआ है। इस दृष्टि से देखें तो सरकार ने संगीता का कद बढ़ा दिया है। हालांकि, आईएएस लाबी में चुटकी लेने वालों की कमी नहीं है, महासमुंद में बीजेपी कठिन परिस्थितियों में जीत गई, सो संगीता को उसका रिवार्ड मिला है।

उलटफेर

कलेक्टरों की एक लिस्ट और निकलेगी। कम-से-कम छोटे-बड़े चार जिलों के और कलेक्टर बदले जाएंगे। इसी तरह आईपीएस में भी अबकी बड़ी उलटफेर हो सकती है। सरकार अब नक्सल इश्यू पर ज्यादा संवेदनशील है। सो, बस्तर में शीर्ष पुलिस अधिकारियों के न केवल ट्रांसफर होंगे बल्कि एसआरपी कल्लूरी को भी मुख्य धारा में लाकर सरकार बड़ी जवाबदेही सौंप सकती है। एसपी लेवल में भी आधा दर्जन से अधिक जिलों में चेंजेज हो सकते हैं। पुलिस महकमे में कुछ बड़े अफसरों का कद छोटा किया जा सकता है।

मोदी का खौफ

नरेंद्र मोदी के पीएम बनने का खौफ सिर्फ खटराल टाईप के नेताओं और नौकरशाहों में नहीं है, बल्कि माओवादी भी घबराए हुए हैं। आईबी के पास जो इंटेलिजेंस फीड्स आए हैं, उसके अनुसार नक्सली अपने ठिकानों को और मुफीद करने में जुट गए हैं। खबर ऐसी भी है कि नक्सली फिलहाल किसी बड़ी वारदात को अंजाम देने से बचेंगे। अपने अस्तित्व के लिए भले ही छुट-पुट घटनाएं करते रहे। नक्सलियों को भय सता रहा कि बड़ी वारदात करने पर मोदी जवाबी कार्रवाई करवा सकते हैं।

एडवांस गिफ्ट

जांजगीर कलेक्टर ओपी चैधरी इस महीने की 20 तारीख को डा0 अदिति पटेल के साथ परिणय सूत्र में बंध जाएंगे। चैधरी रायगढ़ जिले के हैं और अदिति भी उनके पड़ोसी गांव की रहने वाली हैं। रायपुर मेडिकल कालेज से एमबीबीएस करने के बाद अदिति दो साल से दिल्ली में सिविल सर्विसेज की तैयारी कर रही थीं। मेंन्स क्लियर करने के बाद 3 जून को उनका इंटरव्यू है। चूकि, जेठ की शादी अच्छी नहीं मानी जाती। ओपी की मां भी इसके लिए तैयार नहीं थी। इसलिए, उसे 20 जून करना पड़ा। बहरहाल, कलेक्टर रहते किसी आईएएस की छत्तीसगढ़ में पहली शादी होगी। वह भी माटी पुत्र का। ऐसे में, उसका हाईप्रोफाइल होना स्वाभाविक है। शादी में राज्यपाल, मुख्यमंत्री, कुछ मंत्रियों के साथ बड़ी संख्या में ब्यूरोके्रट्स रायगढ़ पहुंचेंगे। इधर, शादी की तारीख तय होते ही सरकार ने ओपी को कलेक्टर बना दिया। इसलिए, ब्यूरोक्रेसी में हंसी-मजाक भी खूब चल रहा है, सरकार ने ओपी को शादी का एडवांस गिफ्ट दिया है…..।

अंत में दो सवाल आपसे

1. सुनिल कुमार को कैबिनेट मंत्री का दर्जा प्राप्त राज्य योजना आयोग का उपाध्यक्ष बनाने से सूबे के किस राजनीतिज्ञ को सर्वाधिक पीड़ा हुई होगी?
2.राज्य निर्वाचन अधिकारी सुनील कुजूर को सरकार ने ग्रामोद्योग जैसे बेहद छोटे विभाग में क्यों पोस्ट कर दिया?

सोमवार, 26 मई 2014

तरकश, 25 मई


तरकश

नए मंत्री

जून में किसी भी दिन तीन नए मंत्रियों के लिए राजभवन में शपथ ग्रहण का आयोजन किया जा सकता है। अभी, मुख्यमंत्री को मिलाकर 10 मंत्री है। जबकि, 13 होने चाहिए। लोकसभा चुनाव में विधायक मन से काम करें, इसलिए सीएम ने रणनीति के तहत तीन जगह खाली रखी थी……याने जो अच्छा काम करेगा, उसे तोहफा दिया जाएगा। रमन सिंह की दूसरी पारी में पांच आदिवासी मंत्री थे। केदार कश्यप, लता उसेंडी, विक्रम उसेंडी, ननकीराम कंवर और रामविचार नेताम। अभी मात्र दो हैं। केदार कश्यप रामसेवक पैकरा। तीसरी पारी में आदिवासी इलाके से वैसा सपोर्ट नहीं मिला। इसलिए, तय मानिये, तीन से अधिक आदिवासी मंत्री नहीं होंगे। ऐसे में, महेश गागड़ा का नम्बर लगना अब तय हो गया है। बस्तर में भाजपा जीती है। और, शायद महेश के भाग्य से विक्रम उसेंडी अब पार्लियामेंट में पहुंच गए है। बचे दो में से सामान्य और अनुसूचित जाति के एक-एक विधायक को एडस्ट करने की खबर निकल कर आ रही है। अजा की 10 में से आश्चर्यजनक तौर पर भाजपा को 9 सीटें मिल गई थीं। इस वर्ग से अभी सिर्फ पुन्नूराम मोहले मंत्री हैं। जबकि, पिछली बार सीटें कम होने के बाद भी मोहले के साथ दयालदास बघेल भी मंत्री बनने में कामयाब हो गए थे। अबकी सरकार के सामने दिक्कत यह है कि अजा के ज्यादतर विधायक पहली बार चुनाव जीत कर आए है। ऐसे में, किसे मंत्री बनाया जाए, यह जरा पेचीदा हो रहा है। वैसे, सबसे अधिक लाबिंग सामान्य वर्ग के लिए हो रही है। हर दूसरा विधायक मंत्री बनना चाहता है। मगर सब कुछ ठीक रहा तो युद्धवीर सिंह जूदेव को मौका मिल सकता है।

एक अनार……

तीन मंत्रियों की पोस्टिंग के साथ ही मंत्रिमंडल का पुनर्गठन भी किया जाएगा। अभी सबसे अधिक लोड मुख्यमंत्री डा0 रमन सिंह पर है। उनके पास वित्त, नगरीय प्रशासन, वन, सामान्य प्रशासन, माईनिंग, पावर, खेल, युवा कल्याण, जनशिकायत, योजना, जैसे छोटे-बड़े दर्जन भर से अधिक विभाग हैं। इनमें से वित्त तो उन्हीं के पास रहेगा मगर वन और नगरीय प्रशासन जैसे कुछ विभागों को वे निश्चित तौर पर शिफ्थ करेंगे। वन किसी नए मंत्री को दिया जा सकता है। लेकिन, स्थानीय चुनाव को देखते नगरीय प्रशासन किसी सीनियर मंत्री को देना पड़ेगा। दिसंबर में मंत्रिमंडल के गठन के समय सबसे अधिक के्रज इसी विभाग का रहा। मई मंत्रियों ने इसके लिए इच्छा जताई थी। विभाग एक और दावेदार कई होने का ही नतीजा रहा कि सीएम ने लोकसभा चुनाव तक इसे अपने पास रखना मुनासिब समझा। वैसे, जिस तरह के संकेत मिल रहे हैं, अमर अग्रवाल को फिर से नगरीय प्रशासन मिल सकता है। वहीं, पुनर्गठन में प्रेमप्रकाश पाण्डेय का भी वजन बढ़ेगा।

मोदी की मीटिंग

26 मई को प्रधानमंत्री पद का शपथ लेने के अगले दिन नरेंद्र मोदी पहली मीटिंग सिकरेट्रीज की लेंगे। इसमें खास बात यह है कि बैठक में सिकरेट्रीज को अकेले आने कहा गया है। आमतौर पर सिकरेट्रीज अपने दो-चार मातहत अधिकारियों के साथ ही बैठक में पहुंचते हैं। यह सब जगह होता है। रायपुर में भी। सिकरेट्रीज से जब सवाल पूछा जाता है, वे पीछे अफसरों की ओर ताकने लगते हैं। मोदी के अकेले आने के फरमान से भारत सरकार के अफसरों की हालत खराब है। शनिवार अवकाश होने के बाद भी दिल्ली में केंद्र सरकार के दफ्तरों में आज दिन भर मीटिंग के नोट्स तैयार किए गए। कुछ विभागों के फीगर के लिए रायपुर भी फोन खटखटाए गए। पता चला है, परफारमेंस के हिसाब से मोदी सिकरेट्रीज लेवल मंे भी बदलाव करेंगे।

शुक्ला को हेल्थ

दो लोकसभा चुनाव कराने के बाद डिप्टी इलेक्शन कमिश्नर डा0 आलोक शुक्ला एक जुलाई को छत्तीसगढ़ लौट आएंगे। उनका डेपुटेशन 20 जून को खतम हो जाएगा। शुक्ला 86 बैच के आईएएस हैं। रायपुर लौटने पर उन्हें प्रींसिपल सिकरेट्री हेल्थ बनाए जाने का चांस ज्यादा है। शुक्ला हेल्थ में पहले भी रह चुके हैं। स्कूल एजुकेशन के बाद हेल्थ ही वह विभाग है, जहां छै महीने, साल भर में सिकरेट्री बदल जा रहे हैं। पिछले साल मार्च में अजय सिंह को हटाकर एमके राउत को इसकी कमान दी गई थी। साल भर के भीतर ही अजय सिंह को आश्चर्यजनक रूप से फिर से हेल्थ सौंप दिया गया।

दामाद बाबू

केंद्र में भाजपा की सरकार बनने के बाद एक आईएएस दामाद बाबू फिर से छत्तीसगढ़ आने की कोशिशों मंे जुट गए हैं। वे यहां पहले भी पांच साल रह चुके हैं। और, तमाम प्रयासों के बाद भी मनमोहन सरकार ने जब उनका डेपुटेशन बढ़ाने से इंकार कर दिया, तो उन्हें मन मारकर यहां से बोरिया-बिस्तर बांधना पड़ा था। मगर, छत्तीसगढ़ में जो मजे हैं, वह बाकी राज्यों में कहां। सो, अपने साथ काम किए अधिकारियों, सप्लायरों को फोन कर बताना चालू कर दिए हैं कि चिंता मत करों, मैं फिर आ रहा हूं। हालांकि, पांच साल के बाद नार्मली दोबारा स्टेट डेपुटेशन मिलता नहीं। लेकिन, परिस्थियां अनुकूूल हो तो कुछ भी संभव है।

26 के बाद

आईएएस, आईपीएस के ट्रांसफर अब प्रधानमंत्री के शपथ से सरकार के लौटने के बाद होंगे। याने 26 के बाद। 29-30 तक भी जा सकता है। वैसे, आज कैबिनेट को देखते अफसरों में उत्सुकता थी कि लिस्ट आज निकल जाए। कई बार कैबिनेट के बाद सूची जारी हुई है। मगर, सरकार पहले से 26 के बाद ही फेरबदल करने का मन बना चुकी है। सो, कलेक्टर और एसपी के दावेदारों को अभी और इंतजार करना होगा।

अंत में दो सवाल आपसे

1. मोदी लहर नहीं होती तो सरोज पाण्डेय कितने वोट से चुनाव हारती?
2. एक हारे हुए मंत्रीजी का खर्चा-पानी कौन से तीन मंत्री मिलकर उठा रहे हैं?

शनिवार, 10 मई 2014

तरकश, 11 मई


तरकश

राजधानी से कलेक्टरी

चीफ सिकरेट्री की कुर्सी संभालते ही विवेक ढांड ने विभागाध्यक्षों की पहली मीटिंग में ही मुख्यालय से बाहर रहने वाले अधिकारियों, कर्मचारियों को चेताया था। मगर अब उस कलेक्टर का क्या किया जाए, जो राजधानी में बैठकर जिले का काम निबटा रहे हैं। बताते हैं, छोटा जिला होने के कारण आईएएस का वहां मन नहीं लग रहा है। सो, 17 को पोलिंग होने के दो दिन बाद ही वे राजधानी आ गए थे। अब, जिला मुख्यालय से राजधानी स्थित उनके आवास पर रोज फाइलें आती हैं। समय मिलने पर वे फाइलों पर हस्ताक्षर कर वापिस भेज देते हैं। 20 दिन से इसी तरह चल रहा जिला। याने राम राज वाला मामला है।

लकी बैच

आईएएस में 2003 बैच को लकी बैच कहा जा सकता है। इस बैच में चार आईएएस हैं और चारों कलेक्टर हैं। सिद्धार्थ कोमल परदेशी बिलासपुर, रीतू सेन सरगुजा, रीना बाबा कंगाले कोरबा और अविनाश चंपावत कोरिया। यह पहला मौका होगा, जब किसी बैच के सभी चार आईएएस कलेक्टर होंगे। इस बैच के आईपीएस भी पीछे नहीं है। रतनलाल डांगी, ओपी पाल और पी सुंदरराज 2003 बैच के आईपीएस हैं। विधानसभा चुनाव तक डांगी कोरबा, पाल रायपुर और सुंदरराज अंबिकापुर के एसपी थे। इनमें से सिर्फ डांगी चेंज हुए हैं। बाकी पाल और सुंदराज कमान संभाले हुए हैं।

नारी सशक्तिकरण

भले ही आप इसे इत्तेफाक कह सकते हैं मगर यह सही है कि प्रदेश में चार महिला कलेक्टर हैं और खास बात यह कि चारों संसदीय जिले हैं। वहां वे जिला निर्वाचन अधिकारी की हैसियत से न केवल चुनाव करवा रही हैं बल्कि, 16 मई को अपने हाथों जीतने वाले सांसद को सर्टिफिकेट बांटेंगी। मसलन, महासमुंद में संगीता पी, कांकेर में डी ममगई, कोरबा में रीना बाबा कंगाले और सरगुजा में रीतू सेन। वैसे, सूबे में छोटे-बड़े जिले तो हैं 27 मगर संसदीय क्षेत्र वाले 11 जिले का अपना अलग इम्पार्टेंस है। बचे 16 जिलों के कलेक्टरों को लोकतंत्र के महापर्व में हिस्सा लेने का चांस नहीं मिल पाता।

लौटेंगे केडीपी

सब कुछ ठीक रहा तो आचार संहिता के बाद बिलासपुर कमिश्नर केडीपी राव का वनवास खतम हो जाएगा। परिस्थितियां कुछ बदल चुकी है, इसलिए 20 मई के आसपास होने वाले प्रशासनिक फेरबदल में उन्हें रायपुर लाने पर विचार चल रहा है। जाहिर है, वे मंत्रालय में लौटेंगे। केडीपी की सरकार के साथ पिछले साल मई में तनातनी हो गई थी, जब उन्हें मंत्रालय से हटाकर बिलासपुर का कमिश्नर पोस्ट किया गया था। राव ने इसे अपना डिमोशन मानते हुए कानून के शरण में चले गए थे। मगर कैट से लेकर हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में जब उन्हें राहत नहीं मिली तो इस साल जनवरी में उन्होंने बिलासपुर ज्वाईन किया था।

खींचेगी तलवारें

काउंटिंग के पहले ही कांग्रेस में मोतीलाल वोरा और भूपेश बघेल खेमा आमने-सामने की स्थिति में है। दुर्ग जिला कार्यकारिणी में कुछ नियुक्तियों को पीसीसी द्वारा निरस्त कर दिए जाने से नाराज वोरा गुट पीछे हटने के लिए तैयार नहीं है। वोरा समर्थक इसके लिए दिल्ली पहुंच गए हैं। अलबत्ता, 16 को नतीजे आने के बाद कांग्रेस में और तलवारें खीचेंगी। पार्टी के गुटीय लिहाज से महासमुंद, कोरबा और बिलासपुर संसदीय सीटों के नतीजे काफी मायने रखेंगे। दरअसल, भीतरघात की सर्वाधिक शिकायतें इन्हीं तीन सीटों पर है। नतीजे अगर अनुकूल नहीं आए, तो संगठन खेमे पर हार का ठीकरा फूटेगा। विरोधी खेमे को तो अब वोरा गुट का भी सपोर्ट रहेगा। ऐसे में पार्टी में अंदरुनी झगड़े और बढ़ेंगे।

नाराज

हाउसिंग बोर्ड को जमीन मुहैया कराने में हीलाहवाला करने को लेकर चीफ सिकरेट्री विवेक ढांड कुछ कलेक्टरों से खफा हैं। पीलिया को लेकर कलेक्टरों की हुई वीडियोकांफें्रसिंग में ढांड ने इस पर चिंता जताते हुए कहा कि कलेक्टरों को हाउसिंग बोर्ड को लैंड देने में टरकाना ठीक नहीं है।

बड़ा फेरबदल

आचार संहिता समाप्त होने के बाद मंत्रालय से लेकर कलेक्टर, एसपी आईजी तक में बड़ा फेरबदल होगा। मंत्रालय में करीब सात साल से होम संभाल रहे एनके असवाल का अबकी यह विभाग बदलना तय है। असवाल भी अब होम में रहने के इच्छुक नहीं बताए जाते। इसी तरह दर्जन भर से अधिक जिलों के कलेक्टर, एसपी भी चेंज होंगे। दो रेंज के आईजी भी बदल सकते हैं। सूत्रों की मानें तो लिस्ट भी लगभग तैयार है। आचार संहिता समाप्त होते ही आर्डर जारी हो जाएंगे।

अंत में दो सवालन आपसे

1. प्रदेश के आईपीएस लाबी मुख्य निर्वाच अधिकारी सुनील कुजूर को अगला प्रींसिपल सिकरेट्री होम के रूप में क्यों देखना चाह रही है?
2. प्रदेश के किस मंत्री पर महासमुंद  में पार्टी प्रत्याशी चंदूलाल साहू के खिलाफ काम करने के आरोप लग रहे हैं?

मंगलवार, 6 मई 2014

तरकश, 4 मई

तरकश

एक अनार सौ…..

छत्तीसगढ़ में हर साल जिस तदाद में नए आईएएस आ रहे हैं, कलेक्टरी के लिहाज से यह कैडर अब अच्छा नहीं रहेगा। चार-चार, पांच-पांच जिले में कलेक्टरी अब पुरानी बात होगी। मध्यप्रदेश की तरह दो-तीन जिले हो गए, तो बहुत है। दरअसल, जिले है सिर्फ 27। इनमें से 15 से अधिक डिस्ट्रिक्ट ऐेसे हैं, जहां अपनी इच्छा से कोई जाना नहीं चाहता। याने नक्सल प्रभावित या बेहद छोटे। इन जिलों में जाने का मतलब होता है, भागते भूत की लंगोटी काफी….। पहली कोशिश चुनिंदा 10-12 जिलों की होती है। इनमें भी, सबसे बड़े रायपुर, बिलासपुर, दुर्ग, कोरबा और रायगढ़ की रेटिंग सबसे ज्यादा है। फिलवक्त, इनमें से दुर्ग और कोरबा को छोड़कर किसी के चेंज होने के कोई आसार नहीं है। और, दावेदार हैं, पूरे 65। 99 बैच से लेकर 2008 तक के। 2009 वाले वार्मअप हो रहे हैं, वो अलग हैं। 2008 बैच के आईएएस दीगर राज्यों में कलेक्टर बन गए हैं। यहां इस बैच के भीम सिंह को झटके में धमतरी कलेक्टर बनने का मौका हाथ लग गया। चुनाव आयोग ने वहां से एनके मंडावी को हटा दिया था। अव्वल, 2007 बैच की शम्मी आबिदी अभी कलेक्टर नहीं बनी हैं। कुल मिलाकर आने वाला समय कलेक्टरों के लिए कठिन रहेगा। वही, एक अनार, सौ बीमार वाला हाल होगा।

माडल कैपीटल

नरेंद्र मोदी ने एक बार फिर न्यू रायपुर की तारीफ की है। चुनावी व्यस्तता के बीच उन्होंने गुरूवार को ट्विट किया…..विकास देखना हो तो आप नया रायपुर जाइये, वहां डा0 रमन सिंह के नेतृत्व में किस तरह नई राजधानी आकार ले रही है। इससे पहले भी जब वे यहां आए थे, उन्होंने न केवल इसकी प्रशंसा की थी बल्कि अहमदाबाद जाकर अफसरों की टीम यहां देखने के लिए भेजा था, कि किस तरह नए रायपुर का प्लान बनाया गया है। जाहिर है, मोदी अगर पीएम बनें तो न्यू रायपुर देश के लिए माडल बनेगा। रमन सिंह को इसका क्रेडिट मिलेगा ही, एनआरडीए के चेयरमैन एन बैजेंद्र कुमार और पूर्व सीईओ एसएस बजाज की भी अहमियत बढ़ेगी।

ना बाबा

चुनाव आयोग के शिकार बनें कलेक्टर, एसपी को आचार संहिता खतम होने के बाद राज्य सरकारें आमतौर पर उसी जिले में पोस्ट कर देती है, जहां से वे हटाए गए होते हैं। अपने सूबे में भी 2003 का विस चुनाव छोड़ दें तो इसके बाद हमेशा ऐसा ही हुआ है। इसके पीछे मकसद होता है, चुनाव आयोग को बताना कि अब हम सिकंदर हैं। मगर कोरबा कलेक्टर के मामले में अबकी शायद यह न हो पाए। पता चला है, बिना किसी ठोस वजह के हटाए जाने से रजत नाखुश हैं। वैसे भी, उनका वहां डेढ़ साल हो गया है। इसलिए, अब वे कोरबा लौटना नहीं चाहते। ऐसे में, रजत को दुर्ग शिफ्थ किया जा सकता है। और, डायरेक्टर पब्लिक रिलेशंस ओपी चैधरी को कोरबा।

नेहा को रायपुर?

डेपुटेशन से लौटने वाले अफसरों को आजकल अच्छी पोस्टिंग मिल रही है। मैगनीज ओर इंडिया लिमिटेड से लौटे आईपीएस प्रदीप गुप्ता आते ही दुर्ग जैसे रेंज के आईजी बन गए, तो दिल्ली से लौटे अमरेश मिश्रा कोरबा के एसपी। ऐसे में, नारकोटिक्स से डेपुटेशन से लौटीं नेहा चंपावत की पोस्टिंग को लेकर पुलिस महकमे में अटकलें तेज हो गई हैं। सूत्रों का कहना है, नेहा को रायपुर एसपी पोस्ट किया जा सकता है।

आखिरकार रिलीव

94 बैच की आईएएस अफसर निधि छिब्बर को सरकार ने आखिरकार सेंट्रल डेपुटेशन के लिए रिलीव कर दिया है। निधि को डिफेंस मिनिस्ट्री मंे ज्वाइंट सिकरेट्री की पोस्टिंग मिली है। आईएएस बिरादरी में इसे प्रतिष्ठापूर्ण पदास्थापना मानी जाती है। हालांकि, भारत सरकार से फरवरी में ही इसका आर्डर निकल गया था। मगर, अफसरों की कमी का हवाला देते हुए यहां सामान्य प्रशासन विभाग ने उन्हें रिलीव करने से असमर्थता जता दी थी। मगर पिछले डेढ़ हफ्ते में उनकी फाइल तेजी से मूव हुई और उन्हें इजाजत मिल गई। अलबत्ता, उनके पति विकास शील की फाइल अभी भारत सरकार में प्रोसेज में है। वहां से ओके होने के बाद राज्य सरकार उन्हें भी दिल्ली के लिए रिलीव कर देगी। दोनों पांच साल वहां रहेंगे।

होटलों में होड़

चंद दिनों पहले खुले ताज और हयात ने राजधानी के होटल मालिको की नींद उड़ा दी है। ताज में 10 हजार रुपए के रुम पैकेज में 4 हजार में उपलब्ध हैं। हयात में भी कुछ इसी तरह की स्थिति है। ऐसे में हाईप्रोफाइल लोग शादी-ब्याह या अन्य बड़ी पार्टियों के लिए अब इन दोनों होटलों की ओर भाग रहे हैं। ग्राहकांे को खींचने के लिए बाकी बड़े होटलों को भी भारी डिस्काउंट के लिए सोचना पड़ रहा है। ये तब है, जब रेेडिशन, मेरियेट और पार्क इन सरीखे सितारा होटल रायपुर मेें और आने हैं।

अच्छी खबर

रोजगार की दृष्टि से यह अच्छी खबर हो सकती है……जानी-मानी टायर कंपनी सीएट रायपुर में फैक्ट्री लगाने की तैयारी कर रही है। इसके लिए कंपनी ने सरकार से 40 एकड़ लैंड मांगा है। सीएसआईडीसी ने उसके लिए लैंड की तलाश शुरू कर दी है। सरकार के पास जो प्रपोजल आए हैं, उसके अनुसार टायर कारखाने में 2000 लोगों को रोजगार मिलेगा।

जंगल राज

जंगल विभाग में जंगल राज ही चल रहा है…..जंगल विभाग के मुखिया एके सिंह के पास पीसीसीएफ के साथ, लघु वनोपज संघ का भी प्रभार है। याने डबल पोेस्टिंग। और, एके भल्ला की स्थिति यह है कि उन्हें पीसीसीएफ बनने के लिए दर-दर भटकना पड़ रहा है। जबकि, डीपीसी हो गई है। मगर पुरानी जांच का हवाला देकर उनकी फाइल अटकवा दी गई है। यही वजह है कि पिछले सप्ताह उनके इस्तीफे की चर्चा सुर्खियो में रही।

अंत में दो सवाल आपसे

1. आईएएस निधि छिब्बर को डेपुटेशन पर दिल्ली जाने के लिए पहले ना-ना और बाद में फिर अनुमति कैसे मिल गई?
2. एक कलेक्टर का नाम बताइये, जो आचार संहित लागू होने के बाद भी बिना इजाजत लिए एक ठेेकेदार की हाईप्रोफाइल पार्टी में शरीक होने रातोरात रायगढ़ पहंुच गए?