शनिवार, 30 जून 2012

तरकश, 1 जुलार्इ

सहमे आर्इपीएस


बिलासपुर के एसपी राहुल शर्मा की मौत के बाद पुलिस महकमे में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। एक के बाद एक अफसर, या तो सदगति को प्राप्त हो रहे हैं या बीमारी के शिकार हो रहे हैं। याद होगा, हादसे के दूसरे दिन आर्इजी जीपी सिंह निबट गए। इसके 20 वें दिन बीएस मारावी की मौत हो गर्इ। फिर, डेढ़ महीने बाद र्इओडब्लू में पोस्टेड डीआर्इजी डीडी चतुर्वेदी का देहावसान हो गया। और अब, एडीजी रामनिवास बीमार चल रहे हैं। एक्सपांडेलाइटिस का इतना तगड़ा अटैक रहा कि हफते भर तक बिस्तर से हिल-डुल नहीं पाए। अब किसी तरह बेल्ट बांधकर आफिस आ रहे हैं। फस्र्ट फलोर पर सीढ़ी चढ़ने में तकलीफ होने की वजह से उन्हें अब ग्राउंड फलोर पर एआर्इजी का कमरा एलाट किया गया है। रामनिवास डीजीपी के प्रबल दावेदार हैं। सो, उनकी मनोदशा क्या होगी, आप समझ सकते हैं। पीएचक्यू के जिस अफसर के चेम्बर में जाएं, आजकल यही चर्चा है.....राहुल की मौत के समय पंचख चल रहा था। और इस दौरान इस तरह की घटना का अशुभ योग होता है। और हो भी कुछ ऐसा ही रहा है। पहली बार ताकतवर पुलिस महकमे के खिलाफ रमन कैबिनेट एक हो गया। इसलिए आर्इपीएस अफसरों का सहमना अस्वभाविक नहीं है।


अच्छी खबर


राज्य सरकार के लिए एक अच्छी खबर होगी......2008 बैच के पंजाब कैडर के युवा आर्इएएस दंपति अड़पा कार्तिक और रूपांजलि ने भारत सरकार से छत्तीसगढ़ में काम करने की इच्छा जतार्इ है। दोनों ने इसके लिए डीओपीटी को आवेदन भेज दिया है, जिस पर कार्रवार्इ अब अंतिम चरण में है। अड़पा वहां नगरीय प्रशासन विभाग में एडिशनल सिकरेट्री हैं और रूपांजलि लुधियाना डेवलपमेंट अथारिटी में एडिशनल एडमिनिस्टे्रटिव चीफ हैं। दोनों पंजाब के टाप के अफसर माने जाते हैं। बहरहाल, यह पहला मौका होगा, जब पंजाब कैडर का आर्इएएस छत्तीसगढ़ आ रहा है। पंजाब और महाराष्ट्र को आर्इएएस में टाप का कैडर माना जाता है।


पीए का चक्कर


दिल के चक्कर में एक हार्इप्रोफाइल शखिसयत का पीए मारा गया। उसका जालिम दिल लग भी गया तो एक संवेदनशील आयोग की मेम्बर और भाजपा नेत्री से। दोनों शादी-शुदा हैं, इसलिए साब ने बहुत समझाया, संगठन के आदमी हो, बदनामी होगी। आयोग की महिला चेयरमैन ने भी अपनी सदस्या को लाइन पर लाने के लिए कम कोशिश नहीं की। मगर यह ऐसी बीमारी है कि इस पर किसी का वश कहां चलता है। पिछले हफते महिला नेत्री के घर पीए पहुंचे तो किसी ने उनकी पत्नी और ससुर को फोन कर दिया। फिर क्या था, दोनों तपाक से मौके पर पहुंच गए। पत्नी और ससुर को खिड़की से देखकर पीए पीछे की दीवार फांद कर भागा। इस चक्कर में पैर भी टूट गया। बड़े साब ने इसे गंभीरता से लिया.....इसके बाद हाउस से पीए को इशारा कर दिया गया, फिलहाल आपकी जरूरत नहीं है। घर में रहकर दिल को दुरुस्त कीजिए। वैसे, ठीक ही कहा गया है, दिल जो न कराए। वरना, पीए की एक समय जलवा था। आर्इएएस, आर्इपीएस, मीडिया से लेकर बड़े-बड़े नेता तक खुशामद में लगे रहते थे।


डेपुटेशन


दिल्ली से सात साल डेपुटेशन करके 2007 में रायपुर लौटे मुख्यमंत्री के प्रमुख सचिव एन बैजेंद्र कुमार फिर दिल्ली जाने की तैयारी कर रहे हैं। सेंट्रल डेपुटेशन के लिए आर्इएएस को साल में दो बार, जुलार्इ और दिसंबर में आवेदन करना होता है। बैजेंद्र इस महीने आवदेन भेज सकते हैं। सुना है, इसके लिए उन्होंने चीफ सिकरेट्री सुनील कुमार से चर्चा की है। 85 बैच के आर्इएएस बैजेंद्र दिल्ली में एम्स, मानव संसाधन, दिवंगत केंद्रीय मंत्री अजर्ुन सिंह के प्रायवेट सिकरेट्री से लेकर सूचना प्रसारण मंत्रालय में काम कर चुके हैं। डेपुटेशन की अधिकतम अवधि पूरी हो जाने के चलते 2007 में उन्हें रायपुर लौटना पड़ा था।




मीडिया और पुलिस


छत्तीसगढ़ में नेटवर्क के मामले में मीडिया और पुलिस का एक ही हाल है। गुरूवार की शाम बासागुड़ा और जगरगुंडा में हुर्इ नक्सली मुठभेड़ इसका ताजा उदाहरण है। शुक्रवार को सुबह तक न मीडिया को पता था और न पुलिस को। टीवी चैनलों में साढ़े नौ बजे बे्रकिंग न्यूज चलना शुरू हुआ। जबकि, आंध्र पुलिस के हवाले से शुक्रवार के कुछ तेलगू अखबारों में यह खबर छप चुकी थी। चेन्नर्इ से एक आर्इएएस मित्र ने वहां के अखबार में खबर पढ़कर इस स्तंभकार को फोन कर एनकाउंटर के बारे में पूछा तो चौंकने के अलावा कोर्इ चारा न था। छत्तीसगढ़ की खबर छत्तीसगढ़ के अखबारों में नहीं है और न पुलिस को पता है.....मीडिया और पुलिस के लिए इससे शर्मनाक और क्या हो सकता है।

लिस्ट टली


कलेक्टरों का ट्रांसफर कम-से-कम 10 जुलार्इ तक के लिए टल गया है। बताते हैं, मुख्यमंत्री की अति व्यस्तता की वजह से सूची पर चर्चा नहीं हो पा रही है। वैसे, कलेक्टर कांफे्रंस के पहले 3-4 जुलार्इ तक लिस्ट निकलने की खबर थी। मगर मुख्यमंत्री के करीबी सूत्रों की मानें तो अब कलेक्टर कांफे्रंस में अफसरों का पारफारमेंस देखने के बाद ही कोर्इ फैसला किया जाएगा। सूत्रों का ऐसा भी कहना है, 10 जुलार्इ तक अगर लिस्ट नहीं निकली तो फिर विधानसभा के मानसून सत्र के बाद ही कुछ होगा। क्योंकि, इस बार जो अफसर जिले में जाएंगे, वे ही अगला चुनाव कराएंगे। सो, सरकार जल्दीबाजी के बजाए ठोक-बजाकर अफसरों को जिले में भेजेगी। ऐसे अफसरों को इसमें प्राथमिकता दी जाएगी, जो अनुभवी के साथ ही संतुलित ढंग से काम करते हों।

डबल झटका


एनएसयूआर्इ के प्रदेश अध्यक्ष देवेंद्र यादव का सिटंग आपरेशन की गुत्थी पुलिस ने सुलझा ली है। पहले वह उलझन में थी कि रिकाडिर्ंग में एक जगह यादव के साथ शिकायतकर्ता चाय पी रहा है और बाद में यादव ने फिर पिटार्इ क्यों शुरू कर दी। पुलिस को पता चला है, देवेंद्र को चाय पीने के दौरान पता चल गया सामने वाले की शर्ट में कैमरा लगा हुआ है, इसलिए गुस्सा कर पिटार्इ कर दी। मगर उसे यह आभास नहीं हुआ कि छत में एक और कैमरा लगा है। छत के कैमरे से ही पिटार्इ भी शूट हो गर्इ। बहरहाल, इस एपिसोड से कांग्रेस को करारा झटका लगा है। वरिष्ठ आदिवासी नेता अरबिंद नेताम की बगावत के पार्टी उबरी भी नहीं थी कि यह कांड हो गया। इससे पार्टी के खिलाफ दोहरा संदेश गया है। एक तो जोर-जबर्दस्ती चंदा उगाही का और दूसरा, आपस में ही एक-दूसरे को निबटाने का। यह किसी से छिपा नहीं है कि एनएसयूआर्इ प्रमुख को एक्सपोज करने में पार्टी के किस गुट का हाथ है।

अंत में दो सवाल आपसे


1. सीएम हाउस से ओपी गुप्ता को छुटटी पर क्यों भेज दिया गया है?

2. प्रींसिपल सिकरेट्री विवेक ढांड को एसीएस बनाने में देरी क्यों हो रही है?


रविवार, 24 जून 2012

तरकश, 24 मर्इ

वाह मंत्री जी

इस वाकये से ऐसा मैसेज जा रहा है कि मुख्यमंत्री स्तर पर हुए फैसले को विभाग के मंत्री पलट दे रहे हैं.....मुख्यमंत्री और मुख्य सचिव की मौजूदगी में पिछले दिनों हुर्इ वन विभाग के कैडर रिव्यू बैठक में फारेस्ट सर्किलों में सीएफ के बजाए सीसीएफ पोस्ट करने का फैसला लिया गया था। औपचारिक स्वीकृति के लिए फाइल भारत सरकार को भेजी जानी थी। मगर इस बीच एक आश्चर्यजनक घटनाक्रम में वन मंत्री विक्रम उसेंंडी ने गुरूवार को नोटशीट में यह लिखते हुए अडं़गा लगा दिया, सर्किलों में सीएफ सिस्टम ही बरकरार रखा जाए। राज्य बनने के बाद ऐसा पहली बार हुआ कि सीएम के ओके होने के बाद ऐसी नोट लिखी गर्इ हो। बताते हैं, पर्दे के पीछे बड़ा खेल हुआ। मलार्इदार कुर्सी खोने से घबराए कुछ सीएफ पिछले रविवार को राजधानी के एक बड़े होटल में बैठे। तय हुआ कि किसी तरह सीसीएफ पोसिटंग को रोका जाए। चर्चा है, इसके लिए 50 पेटी का बंदोबस्त हुआ और काम हो गया।

बर्दी को थप्पड़़

पुलिस में नीचे का स्टाफ अनुशासनहीनता करें तो लाइन अटैच, निंदा, निलंबन जैसी कर्इ कार्रवार्इ और आर्इपीएस अधिकारियों के लिए सौ खून माफ। जगदलपुर में पिछले हफते मुख्यमंत्री के कार्यक्रम में तैनात जवानों के साथ ऐसा ही कुछ हुआ। बस्तर के कप्तान ने तीन कांस्टेबलों को भरे कार्यक्रम में थप्पड़ जड़ दिया। जवानों का कसूर इतना था कि वे भूख पर काबू न रख पाए। सुबह छह बजे से जवानों की डयूटी लगार्इ गर्इ थी। सीएम पहुंचे 10 बजे और कार्यक्रम खतम हुआ दोपहर करीब 1 बजे। तब तक 46 डिग्री टेम्परेचर में डयूटीरत जवानों को नाश्ता कौन कहें, पानी पाउच तक नहीं मिला। सीएम कार्यक्रम स्थल से जैसे ही रवाना हुए, भूख से बिलबिला रहे जवानों ने कार्यकर्ताओं के साथ भोजन शुरू कर दिया। इसके बाद तो मत पूछिए, नक्सल इलाके में तैनाती का गुस्सा कप्तान ने जवानों पर उतार दिया। जवान तब बर्दी में थे। और पुलिस में बर्दी का बड़ा मान होता है। उस पर शासन का मोनो भी लगा रहता है। बर्दीधारी जवानों पर हाथ साफ कर कप्तान ने किसका अपमान किया, आप समझ सकते हैं। जबकि, लापरवाही अफसरों की थी। वीवीआर्इपी डयूटी में तैनात जवानों को नाश्ता-पानी का इंतजाम न करना गंभीर चूक है। और पुलिस मैन्यूल भी यही कहता है, जवानों की सुविधाओं का खयाल रखा जाना चाहिए। पर कप्तान तो कप्तान होता है। उसके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवार्इ कौन करें।

नए आर्इएएस

राज्य प्रशासनिक सेवाओं से आर्इएएस अवार्ड होने वाले अफसरों से सरकार को कोर्इ खास उम्मीद नहीं है। 14 में से अनिल टूटेजा, नरेंद्र शुक्ला ठीक-ठाक हैं और थोड़ा-बहुत उमेश अग्रवाल। बाकी के भगवान ही मालिक हैं। एक अफसर के बारे में सुनिये, वे कुछ दिनों तक मार्कफेड में एडिशनल एमडी रहे। और वहां के अफसरों पर प्रेशर डालकर मार्कफेड के पैसे से अपने पैरेंटस का 11 लाख से अधिक का इलाज करा डाला। इनमें प्लेन के फेयर से लेकर अनाप-शनाप बिल शामिल है। कुछ तो इतने सीधे-सादे हैं कि खामोख्वाह वे प्रतिष्ठा का सवाल नहीं बनाते, उन्हें दो-तीन हजार भी चल जाता है। लिस्ट में 14 लोगों के नाम हैं, जिनमें से आेंकार सिंह और आर्इआर देहारी के खिलाफ विभागीय जांच चल रही है, सो उनको आर्इएएस अवार्ड होना नहीं है। बचे 12। और इन 12 में से छह से सात लोग ऐसे हैं, जिन्हें कलेक्टर बनाया तो जिले का बेड़ा गर्क होना तय है। इसी वजह से सरकार को जल्दी नहीं है।

वापसी

टूरिज्म बोर्ड के एमडी तपेश झा की भले ही एक घटना विशेष की वजह से छुटटी हो गर्इ। मगर आर्इएफएस अफसरों की वापसी की इसे शुरूआत ही समझिए। सीएम के करीबी सूत्रों की मानें तो मानसून सत्र के बाद आर्इएएस अधिकारियों की एक बड़ी लिस्ट निकलेगी, उनमें बड़ी संख्या आर्इएएस अफसरों की भी होगी। तीन-चार को छोड़कर लंबे समय से सरकार के विभिन्न पदों पर जमे अफसरों को वन मुख्यालय वापस भेजा जाएगा और उनके बदले अब नए अफसरों को मौका दिया जाएगा। चुनाव के मुशिकल से साल भर बच गए हैं, सो सरकार अब सख्त है और जैसे संकेत मिल रहे हैं, काम को प्राथमिकता दी जाएगी, अब जुगाड़ नहीं चलेगा।

नया बसेरा

सबसे लंबे समय तक राज्य के डीजीपी रहे विश्वरंजन को छत्तीगसढ़ रास आ गया है। वे अब रायपुर को नया ठिकाना बनाने जा रहे हैं। उनके खमारडीह सिथत मकान में फायनल टच चल रहा है। छत्तीगसढ़ में बसने वाले वे पहले डीजी होंगे। इससे पहले प्रथम डीजी मोहन शुक्ला से लेकर आरएलएस यादव, एसके दास, अशोक दरबारी रिटायरमेंट के बाद बोरिया-बिस्तर बांधकर चले गए। ओपी राठौर का डीजी रहते देहावसान हो जाने के कुछ दिन बाद उनका परिवार गृह राज्य लौट गया था।

आदिवासी कार्ड

रमन सरकार किसी भी सूरत में आदिवासी वोटों को खिसकने नहीं देना चाहती। शायद यही वजह है कि आदिवासियों से जुड़ी योजनाओं को खासी प्राथमिकता दी जा रही है। आदिवासी बच्चों के लिए रायपुर में सर्वसुविधायुक्त हास्टल बनाने के बाद अब मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह 3 जुलार्इ को दिल्ली में ट्रार्इबल हास्टल का उदघाटन करने जा रहे हैं। 15 करोड़ में बनने वाला यह हास्टल साल भर में पूरे होने का भी कीर्तिमान बनाया है। सरकार के निर्देश थे, 2013 से पहले हास्टल बन जाना चाहिए। और अफसरों का दावा है, बाकी किसी राज्य के आदिवासी छात्रों के लिए दिल्ली में हास्टल नहीं है। चलिये, चुनाव में इसका लाभ तो मिलेगा ही।

गठजोड़

अपने करतबों की वजह से राज्य सूचना आयोग हमेशा चर्चा में रहता है। नर्इ चर्चा रायपुर नगर निगम और आयोग के बीच मधुर रिश्तों को लेकर है। शंकर नगर में आयोग तक जाने वाली टूटी-फूटी सड़क को नगर निगम ने चकाचक कर दिया है। बदले में, नगर निगम के खिलाफ आयोग में जो अपील लग रही हैं, या तो खारिज हो जा रही या ठंडे बस्ते में चली जा रही है। ठीक भी है, आखिर ताली एक हाथ से तो बजती नहीं।



अंत में दो सवाल आपसे

1. हेमचंद यादव का पंचायत मंत्रालय कहां से और कौन संचालित कर रहा है?

2. टूरिज्म बोर्ड के एमडी तपेश झा को हटाने के पीछे मुख्य वजह क्या थी?



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रविवार, 10 जून 2012

तरकश, 10 जून


फिर विवाद में

आठ साल के वनवास के बाद मेन स्ट्रीम में लौटे हायर एजुकेशन सिकरेट्री आरसी सिनहा एक बार फिर विवाद में घिर गए हैं। मामला है, मापदंड पूरा न करने वाले 10 बीएड कालेजों को काउंसलिंग की इजाजत देने का। इसके लिए उन्होंने न तो सुप्रीम कोर्ट के गाइडलाइन का ध्यान रखा और न ही उदधार करके वनवास से वापसी कराने वाले अपने चीफ सिकरेट्री सुनील कुमार के फैसले का ही खयाल किया। दरअसल, सुविधाओं के अभाव में इन कालेजों को पिछले साल एडमिशन देने से रोक दिया गया था। मगर कालेज संचालकों ने हार नहीं मानी। परदे के पीछे हुए डील के बाद पिछले साल की काउंसलिंग इस साल कराने के लिए फाइल मूव हुर्इ। लेकिन एससीर्इआरटी ने सुप्रीम कोर्ट के इस नियम का हवाला देते हुए, 30 सितंबर के बाद किसी भी प्रोफेशनल कोर्सेज में दाखिला नहीं हो सकता, काउंसलिंग कराने से इंकार कर दिया था। मगर डील को अंजाम तक पहुंचाना था......सो, यह जानते हुए भी कि काउंसलिंग का अधिकार एससीर्इआरटी का है, स्कूल शिक्षा विभाग ने, कहीं से भी हां हो जाए, हायर एजुकेशन सिकरेट्री सिनहा से अभिमत मांगा। और उन्होंने अनुमति दे भी दी। जबकि, तत्कालीन एसीएस स्कूल एजुकेशन सुनील कुमार ने कड़ी टीप लिखते हुए जनवरी में काउंसलिंग की फाइल लौटा दी थी। सुनील कुमार ने इस स्तंभकार से बातचीत में साफ कहा था, मेरे रहते सवाल ही नहीं उठता। मगर उनके स्कूल एजुकेशन से हटते ही खेल हो गया। मंत्रालय में चर्चा है, सिनहा ने दबाव में आकर अपनी कलम फंसा ली।

दस का दम

रिटायर आर्इएएस अफसर एसवी प्रभात को प्रशासनिक अकादमी में संविदा नियुकित देने में कड़ा रुख अखितयार कर सरकार ने आखिर अपना दम दिखाया। प्रभात हमेशा डेपुटेशन पर रहे और एक बार तो डेपुटेशन के लिए इजाजत न मिलने पर आर्इएएस से इस्तीफे की धमकी भी दे डाली थी। हालांकि, राज्य को पुनर्वास केंद्र समझने वाले आर्इएएस अधिकारियों को सरकार के इस फैसले से झटका लगा होगा मगर लोगों में इसके अच्छे संदेश गए हैं। हर जगह यही चर्चा है, पहली बार लगा, सरकार बड़ी होती है.....। इससे पहले, आठ साल में चार सीनियर आर्इएएस अफसरों को सस्पेंड करने के बाद भी रमन सरकार अफसरशाही हावी होने के आरोप से बच नहीं पा रही थी। इसको लेकर सत्ताधारी पार्टी के आला नेता भी मुखर हो रहे थे। आयकर छापे के बाद आखिर एक आर्इएएस पर कार्रवार्इ में सरकार ने कर्इ हफते जो लगा दिए थे।

चिंता

कलेक्टरों के पुअर पारफारमेंस ने सरकार की चिंता बढ़ी दी है। पिछले सोमवार को सरकार ने कलेक्टरों से वीडियोकांफ्रेंसिंग के जरिये राज्य का हाल जानना चाहा तो 27 में से एक भी कलेक्टर कसौटी पर खरे नहीं उतरे। तेज-तर्रार माने जाने वाले रायगढ़ कलेक्टर अमित कटारिया को चीफ सिकरेट्री सुनील कुमार ने चुप करा दिया। वे बार-बार पटरी से उतर जा रहे थे। सवाल कुछ, जवाब कुछ और। बेमेतरा कलेक्टर श्रुति सिंह से मुख्यमंत्री ने पूछा, आपके जिले में कितने पटवारी हैं, जवाब मिला, पांच सौ। मंत्रालय के वीडियोकांफें्रसिंग हाल में बैठे सारे लोग माथा पकड़ लिए। छोटे जिले में पांच सौ पटवारी हो ही नहीं सकते। कर्इ कलेक्टर मामूली सवालाें पर भी बगले झांकते रहे। सुकमा कलेक्टर एलेक्स पाल मेनन का पारफारमेंस एकदम बैड रहा। वे बोल नहीं पा रहे थे। एक अफसर की टिप्पणी थी, लग नहीं रहा, एलेक्स नक्सलियों के चंगुल से छुट गया है। इसे देखकर लगता है, मानसून सत्र के बाद कलेक्टरों की मेजर सर्जरी होगी।

खतरे में मूलधन

अन्य राज्यों की तरह फारेस्ट सर्किल में सीएफ की जगह सीसीएफ पोस्ट करने की खबर से कर्इ आर्इएफएस अफसरों की नींद उड़ गर्इ है। खास तौर से उनकी, जो छह महीने पहले सीएफ बनें हैं। इसके लिए क्या नहीं किया। मगर दुर्भाग्य देखिए, जितना इंवेस्ट किए, उसका मूलधन भी वसूल नहीं हुआ और खतरे का अलार्म बज गया। दो सीएफ ने गरमी में ठंड प्रदेशों में जाने के लिए छुटटी की अर्जी लगार्इ थी। मगर सीसीएफ पोसिटंग की खबर मिलते ही आवेदन वापस ले लिया। आखिर, कुछ तो रिटर्न आ जाए। यही नहीं, डीएफओ से सीएफ प्रमोट होने वाले अफसरों में उदासी छायी हुर्इ है। अब सात-आठ साल वन मुख्यालय में दिन काटने पडे़ंगे। अलबत्ता, अरण्य में दिन काट रहे सीसीएफ के चेहरे अब खिले हुए हैं। सीसीएफगिरी करने का मौका जो मिलने जा रहा है।

नंदू की बारी

गुटबाजी भाजपा में भी कम नहीं है और इससे कोर्इ पार्टी बच भी नहीं सकती। मगर कांग्रेस की गुटजाबी की तो बात ही अलग है। भाजपा मेंं गुटबाजी की एक लक्ष्मण रेखा है। कांग्रेस ने ऐसी कोर्इ रेखा नहीं बनार्इ है। जिस इंग्रेड मैक्लाउड का अपना जनाधार नहीं है, मंच पर न बिठाने से खफा होकर उन्होंने राहुल गांधी के कार्यक्रम में इस्तीफे की घोषणा कर दी। और अब देखिए, बुधवार को अजीत जोगी नंदकुमार पटेल के विधानसभा क्षेत्र खरसिया गए थे। इसके दो दिन पहले से उनके समर्थक दौरे को राजनीतिक रंग देने में जुटे रहे। यह भी बताते रहे, पिछले बार भूपेश बघेल और महंेंद्र कर्मा निशाने पर थे......दोनों चुनाव में निबट गए। अबकी नंदू और चौबे की बारी है। यही हाल रहा तो अनुमान लगाइये, अगले चुनाव में कांग्रेस का क्या होगा?

गजब

किसानों के लिए काम करने वाले कृषि मंडी बोर्ड में क्या चल रहा है, आपको इससे अंदाजा लग जाएगा। सूचना के अधिकार में जानकारी लगी है, बोर्ड के अधिकारी महीने भर में आठ हजार रुपए की काफी पाउडर खरीद डाले। दूध, चीनी अलग से। बोर्ड की मीटिंग के नाम पर दो साल में डेढ़ लाख रुपए खाने पर खर्च का बिल पास हुआ है। बोर्ड में गिने-चुने अधिकारी हैं। सब मिलाकर 50 लोग भी नहीं होंगे। पता चला है, बोर्ड से जुड़े लोगों के घर का खर्च भी बोर्ड से पास हो रहा है। ऐसे में अनाप-शनाप बिल तो बनेगा ही।

अंत में दो सवाल आपसे

1. राज्य प्रशासनिक सेवाओं के 14 अफसरों को आर्इएएस अवार्ड के लिए केंद्र सरकार को मिनिटस भेजने में सामान्य प्रशासन विभाग ने तीन महीने क्यों लगा दिए?
2. आरपी मंडल को पहले प्रींसिपल सिकरेट्री और अब, प्रधान को इंजीनियर इन चीफ बनाने से पीडब्लूडी मिनिस्टर बृजमोहन अग्रवाल खुश होंगे या नाखुश?

शनिवार, 2 जून 2012

तरकश, 3 जून


ऐसी बिदाई

एसवी प्रभात को लाभ पहुंचाने के लिए राज्य सरकार ने आखिर क्या नहीं किया। राज्य बनने के बाद डेपुटेशन पर बार-बार निकल जाने वाले प्रभात अप्रैल में रायपुर लौटे तो रिटायरमेंट में महीना भर बचा था। पेंशन वगैरह बढ़ जाए, इसके लिए सबसे पहले फटाफट डीपीसी करके उन्हें एसीएस बनाया गया। चीफ सिकरेट्री सुनील कुमार अवकाश पर गए तो उन्हें प्रभारी सीएस का का चार्ज भी मिल गया। और-तो-और, सीएस के चेम्बर में बिठाए गए। प्रभात ने भी हफ्ते भर तक नौकरशाही की इस जलवेदार कुर्सी का खूब लुफ्त उठाया। सीएस स्टाईल में चेम्बर के बाहर दिन भर लाल बत्ती जलती रही। मगर उनके लिए आखिरी दिन अच्छा नहीं रहा। 31 मई की शाम जब वे रिटायर हुए, मुख्यमंत्री समेत सारे सिकरेट्रीज योजना आयोग की बैठक में दिल्ली में थे। सो, बिदाई पार्टी कौन कहें, बुके देने वाला भी कोई नहीं था। और दिन की तरह शाम 6 बजे चपरासी बैग लेकर गाड़ी तक पहुंचा आया। अब, आईएएस एसोसियेशन से बिदाई पार्टी आयोजित करने की उम्मीद भी नहंी की जा सकती। एसोसियेशन के सिकरेट्री सुबोध सिंह मसूरी में ट्रेनिंग कर रहे हैं। और प्रेसिडेंट नारायण सिंह को भला क्या पड़ी है। वैसे भी, मुंह के सामने से निवाला छीनने के बाद, कोप भवन वाली ही उनकी हालात है।

गलत परंपरा


और अब, सत्ता के गलियारों में इन दिनों इसकी चर्चा खूब है, सरकार एसवी प्रभात को प्रशासनिक अकादमी में संविदा अपांटमेंट देने की तैयारी कर रही है। इसके लिए फाइल मूव हो चुकी है। और कभी भी आदेश निकल सकता है। यद्यपि, प्रशासनिक अकादमी कोई पावरफुल पोस्टिंग नहीं मानी जाती। मगर रिटायरमेंट के बाद पीली बत्ती वाली गाड़ी, बंगला, नौकर-चाकर मुफ्त में बना रहे और पेंशन के अलावे 50 हजार रुपए मिल जाए, तो इसमें हर्ज क्या है। पर, इसका मैसेज अच्छा नहीं जाएगा। सवाल तो अभी से उठने लगे हैं, जो अफसर छत्तीसगढ़ को पिछड़ा और फालतू जगह समझते हुए 12 साल में यहां साल भर भी नहीं रहा, उस पर आखिर इतनी नजरे इनायत क्यों?

इधर भी

80 हजार स्केल वाले राज्य के सीएस, डीजीपी और पीसीसीएफ को नौकरी में रहते हुए भी सब मिलाकर डेढ़ लाख रुपए वेतन नहीं बनता। मगर रिटायर चीफ सिकरेट्री एसके मिश्रा इससे कम नहीं उठा रहे। राज्य वित्त आयोग के सलाहकार के तौर पर हर महीने उन्हें 80 हजार रुपए एकमुश्त मानदेय मिलता है। उन्हें आयोग के चेयरमैन अजय चंद्राकर की सिफारिश पर अपाइंट किया गया है। रमन सरकार की पहली पारी में चंद्राकर जब उच्च शिक्षा मंत्री थे, इंदिरा मिश्रा उनकी एसीएस थीं और तब मिश्रा भी सीएस थे। सो, संबंध पुराना है। हालांकि, चंद्राकर ने मिश्रा को आयोग में लाने की अनुशंसा भर की थी, बाकी मानदेय वगैरह का कमाल तो मिश्राजी ने करा लिया।

बिखराव

राहुल गांधी पिछले महीने आए थे, पार्टी को एकजुट करने के लिए। मगर उनके दौरे के बाद तो लगता है, कांग्रेस और बिखर गई। पिछले 15 दिन में पार्टी में जिस तरह एक-दूसरे को निबटाने का खेल तेज हुआ है, उससे पुराने कांगे्रसी भी मानने लगे हैं, ऐसा ही रहा तो अगले चुनाव में भाजपा को कुछ करना नहीं पडे़गा। नंदकुमार पटेल को हटाकर आदिवासी नेता को प्रदेश अध्यक्ष बनाने की खबर जोर-शोर से प्रसारित कराने के पीछे भी तो आखिर कांग्रेसी ही हैं। भोपाल में छत्तीसगढ़ बनने को लेकर दिए गए बयान को भाजपाई नेताओं तक सबसे पहले कांग्रेसियों ने ही पहुंचाया। अब पटेल अपनी कुर्सी बचाएं या पार्टी को चार्ज करें। जाहिर है, पहले तो अपनी कुर्सी ही बचाएंगे। तब तक भाजपा बहुत आगे निकल गई रहेगी। नगरीय निकायों और पंचायत सम्मेलनों के जरिये भाजपा ने कार्यकर्ताओं को चार्ज करना आखिर शुरू कर ही दिया है।

खेल में खेल

खेल विभाग में एक इतना बड़ा खेल हो गया है कि जांच हो जाए, तो अपराधिक प्रकरण बन सकता है। मामला है, नियम-कायदों को ताक पर रखते हुए अपने चहेते को परमानेंट कोच बनाने का। न तो उसके लिए विज्ञापन निकला और न ही कोई इंटरव्यू हुआ। कोच भी साफ्ट बाल का बनाया गया है, जिसकी न तो कोई अहमियत है और न ही उसमें सीखाने की जरूरत पड़ती। इसमें उंगलियां आईजी लेवल के एक बड़े अधिकारी की ओर उठ रही है।

फिर वही

आपको याद होगा, आउटर में जब भी कोई छेड़छाड़ की घटना होती है, राजधानी पुलिस हर बार वही रिकार्डेड टेप चला देती है.......आउटर में पेट्रोलिंग की जाएगी, प्रेमी जोड़ों को समझाइस दी जाएगी और न जाने क्या-क्या। अलबत्ता, पुलिस के इस अभियान का आलम यह रहा है कि अखबारों में जब तक घटना जीवित रहती है, पुलिस की सक्रियता उतने ही समय तक रहती है। भाठागांव मामला चूकि बिरादरी से जुड़ा था, इसलिए पुलिस कुछ ज्यादा ही एक्टिव रही। मगर अब सब पुराने ढर्रे पर है। ठीक उसी तरह, राजधानी में कोई बड़ी वारदात होती है, तो पुलिस कम्यूनिटी पोलिसिंग की राग अलापने लगती है। उसके बाद फिर वही..., सब ठंडे बस्ते में। ऐसे में रायपुर को अपराधियों की राजधानी बनने से भला कौन रोक पाएगा।  

देर आए.....


एक अच्छी खबर है, हाउसिंग बोर्ड के मकानों के पंजीयन के समय के रेट में अब कोई बढ़ोतरी नहीं होगी। बोर्ड अभी तक रा मैटेरियल महंगा होने की आड़ में मकान पूर्ण होते तक 20 से 40 फीसदी तक ज्यादा वसूल लेता था। मगर अफसरों ने जो रास्ता निकाला है कि उसमें किसी को नुकसान नहीं होगा। योजना के तहत बोर्ड कुछ मकानों का अपने पास रखेगा। जाहिर है, आवास कंप्लीट होते-होते रेट लगभग दुुगुना हो जाता है। बोर्ड ने उन मकानों को बढ़ी हुई दर में बेचकर घाटे की भरपाई करेगा। इससे बोर्ड रेट बढ़ाने की बदनामी से बच सकेगा। आखिर, सरकार की छबि चमकाने वाले अधिकारी जब हाउसिंग बोर्ड से जुड़े हैं, तो इसका लाभ बोर्ड को तो मिलेगा ही। जनसंपर्क आयुक्त बैजेंद्र कुमार आवास पर्यावरण विभाग के पीएस हैं और संचालक जनसंपर्क सोनमणि बोरा बोर्ड के कमिश्नर जो हैं।

अंत में दो सवाल आपसे

1. चीफ सिकरेट्री बनने से महरुम नारायण सिंह को क्या राजस्व मंडल का चेयरमैन बनाने के आश्वासन से खामोश हैं?
2. राहुल गांधी के दौरे के बाद राज्य के किस संवैधानिक पोस्ट पर बदलाव की चर्चा है?