शनिवार, 26 मई 2012

तरकश, 27 मर्इ


ये दोस्ती.....

नौकरशाही में ऐसी दोस्ती देखने को बड़े कम ही मिलती है। बैचमेंट के लिए शायद ही कोर्इ ब्यूरोके्रटस इतना सोचता होगा। अपने सुनील कुमार सीएस बनें तो बैचमेट एवं मित्र एसवी प्रभात को नहीं भूले। हैदराबाद डेपुटेशन से प्रभात लौटे तो रिटायरमेंट में महीना भर बचा था। इसके बाद भी उनके लिए डीपीसी हुर्इ और वे एसीएस बन गए। और अब, सुनील कुमार ऐसे समय पर छुटटी पर गए हैं, जब प्रभात की नौकरी का आखिरी हफता चल रहा है। सबसे सीनियर अफसर होने की वजह से जाहिर है, प्रभात को ही प्रभारी सीएस बनना था। और ऐसा ही हुआ। प्रभात 31 मर्इ को रिटायर होंगे और सुनील कुमार उसी दिन शाम को रायपुर पहुंचेंगे। नौकरी के इस पड़ाव पर प्रभात को आखिर, कितनी बड़ी चीज मिल गर्इ। 10 दिन सीएस रह लेंगे। बायोडाटा में लिखाएगा, प्रभारी सीएस। प्रभात के बारे में बता दें, राज्य बनने के बाद अधिकांश समय उन्होंने डेपुटेशन में बिताया है। एकाध साल ही छत्तीसगढ़ में रहे होंगे।

झटका

अजर्ुन सिंह और दिगिवजय सिंह के साथ लंबे समय तक काम किए आर्इएएस अफसर बैजेंद्र कुमार अब, भाजपा सरकार में अहम ओहदे पर हैं। मगर लगता नहीं, कांग्रेस के उनके तार कमजोर हुए हंै। राहुल गांधी के दौरे के एक दिन पहले उनके इनर सर्किल के दो लोग तैयारियों के सिलसिले में दिल्ली से रायपुर आए, तो बैजेंद्र से मिलना नहीं भूले। बैजेंद्र के घर वे डिनर पर आए और पूरे तीन घंंटे रहे। राज्य के बारे में फीडबैक लिया। अब बैजेंद्र की सुनिये, संबंधों को राजनीतिक चश्मे से ही नहीं देखना चाहिए.......आखिर, व्यकितगत रिश्ते भी तो होते हैं। चलिए, मान लिया। मगर कांग्रेस के लिए तो परेशानी की बात हो सकती है न। कांग्रेस के कुछ नेता बंदूक की नाल बैजेंद्र की ओर जो किए रहते हैं।

राहत

कलेक्टरों के लिए राहत की बात हो सकती है कि तत्काल कोर्इ लिस्ट नहीं निकलने जा रही। सरकार के निकटवर्ती सूत्रों की मानें तो जिलों में मानसून सत्र के बाद ही चेंजेज हाेंगे। इससे पहले, कलेक्ट्रेट कांफें्रंस में उनके पारफारमेंस देखे जाएंगे। जिनका पारफारमेंस अच्छा होगा और विधानसभा चुनाव के समय चुनाव आयोग के तीन साल के रेंज में नहीं आ रहे हाेंगे, तो उन्हें बरकरार रखा जाएगा। पता चला है, चार-पांच जिलों के कलेक्टरों से सरकार संतुष्ट नहीं है। ऐसे में उनकी छुटटी हो जाए तो आश्चर्य नहीं। इनमें नए जिलों के कलेक्टर भी शामिल हैं। सीनियरिटी के हिसाब से भुवनेश यादव और पी दयानंद को मौका मिलना लगभग तय माना जा रहा है। भुवनेश के जूनियर को पिछले फेरबदल में जिला मिल चुका है।

चेंज 

आर्इएएस मेंं न सही, मगर पुलिस महकमे में अगले हफते तक एक छोटी लिस्ट निकलने की खबर है। इनमें कुछ एडिशनल एसपी और दो-तीन एसपी होंगे। इनमें एक बड़े जिले के कप्तान के भी प्रभावित होने की खबर है। इसके बाद एक बड़ा फेरबदल 88 बैच के तीन अफसरों की डीपीसी के बाद होगा। मुकेश गुप्ता, संजय पिल्ले और आरके विज आर्इजी से एडीजी बनेंगे। जाहिर है, इसके बाद रेंज में भी बदलाव होंगे। पुलिस मुख्यालय में भी विभागों की अदला-बदली होगी।

सौ चूहे.....

राज्य के आर्इएफएस अधिकारी इन दिनों प्रींसिपल सिकरेट्री डीएस मिश्रा से बेहद खफा हैं। पिछले हफते कैम्पा की बैठक में मिश्रा आर्इएफएस अफसरों को डोमिनेट करने के लिए टिवटर से कागज डाउनलोड करके लाए थे। सीएस सुनील कुमार की मौजूदगी में कैम्पा की भर्राशाही पर उन्होंने अफसरों की जमकर खिांचार्इ की। मिश्रा का गुस्सा हालांकि गलत नहीं था। कैम्पा के लिए केंद्र से मिले ढार्इ सौ करोड़ में तफरी के अलावा और कुछ नहीं हुआ है। उसी पैसे से जंबो टीम विदेश भी घूम आर्इ। अफसरों ने करोड़ों रुपए का वाट लगा दिया। लेकिन वन अफसरों की बातों में भी दम है। आर्इएफएस कहते हैं, मिश्रा को पहले अपनी ओर देखना चाहिए। दूसरों को 5 लाख तक की गाड़ी की बंदिशें हैं और खुद चलते हैं, 12 लाख की गाड़ी में। कृषि विभाग से हटने के बाद भी लंबे समय तक बीज विकास निगम की टवेटा रखे रहे। सीएम और सीएस से भी बढि़यां चेम्बर है मिश्राजी का। याने सौ चूहे खाकर बिल्ली हज को चली।

दागी अफसर

यंग्री यंग मैन कहे जाने वाले मिनिस्टर राजेश मूणत के बारे मेंं आम धारणा है, गड़बड़ लोगों को वे प्रश्रय नहीं देते। बलिक उनके हाट-हूट से ऐसे लोग दूर ही रहते हैं। मगर उधोग महकमे में अभी जो चल रहा है, वो चौंकाने वाला हैं। सीएसआर्इडीसी के एक दागी अधिकारी को पिछलें दरवाजे से उधोग विभाग में ओएसडी बनाने के लिए फाइल मूव हो गर्इ है। बताते हैं, अधिकारी के खिलाफ राज्य बनने के पहले लोकायुक्त में मामला दर्ज हुआ था और इसी वजह से बिना प्रमोशन उन्हें रिटायर होना पड़ा। सो, मंत्रालय में चर्चा सरगर्म है, मंत्रीजी ऐसे लोगों को कब से लिफट देने लगे।

अंत में दो सवाल आपसे

1. राहुल गांधी के दौरे के बाद सूबे के किस बड़े कांग्रेस नेता की सिथति सबसे ज्यादा खराब हुर्इ है?
2. जिस महिला नक्सली शांतिप्रिया और मीना चौधरी को पकड़ने की कीमत राजनांदगांव के एसपी विनोद चौबे को जान देकर चुकानी पड़ी थी, सरकारी वकील द्वारा उनकी जमानत का विरोध न करना क्या जायज है?

रविवार, 20 मई 2012

तरकश, 20 मर्इ


जय और बीरु

आपको याद होगा, रमन सरकार के शुरूआती दिनों में रायपुर के कलेक्टर राजेंद्र प्रसाद मंडल और एसएसपी अशोक जुनेजा की जोड़ी जय-बीरु के रूप में खूब चर्चित हुर्इ थी। मंडल या जुनेजा शायद ही कभी, दौरे में या बैठकों में अकेले दिखे होंगे.......दोनों में अदभूत समन्वय था। सत्ता के दो ताकतवर अफसरों की टयूनिंग के बारे में भी इन दिनों कुछ ऐसा ही कहा जा रहा है। बात हो रही है राज्य सरकार में सबसे प्रभावशाली एवं सीएम के भरोसेमंद अफसर अमन सिंह और प्रींसिपल सिकरेट्री टू सीएम एन बैजेंद्र कुमार की। सुनील कुमार को सीएस बनाने के लिए आपरेशन पी जाय उम्मेन और आपरेशन नारायण सिंह की स्टे्रटज्डी दोनों ने ही तैयार की थी। आला अधिकारियों की पोसिटंग से लेकर किन योजनाओं से सीएम को पालीटिकल माइलेजा मिलेगा, दोनों तय करते हैं। देखा नहीं आपने, शुक्रवार को कांग्रेस के स्टार नेता राहुल राजधानी में थे और प्रिट और इलेक्ट्रानिक मीडिया में रमन सिंह छाये हुए थे। नौ नए जिले का खाका दोनों ने ही तैयार किया था। सीएम हाउस जाना हो या किसी अहम बैठक में, दोनों साथ दिखेंगे। वैसे भी, बैजेंद्र की सिंहों के साथ केमेस्ट्री खूब जमती है। दिवंगत अजर्ुन सिंह हो या दिगिवजय सिंह और अब रमन सिंह। सिंहों के ही आखिर प्रिय रहे हैं। सो, अमन के साथ जोड़ी स्वभाविक है।

राहत

कलेक्टरों के लिए राहत की बात हो सकती है कि तत्काल कोर्इ लिस्ट नहीं निकलने जा रही और जो खबर चल रही है, वह हवा-हवार्इ ही है। सरकार के निकटवर्ती सूत्रों की मानें तो जिलों में मानसून सत्र के बाद ही चेंजेज हाेंगे। इससे पहले, कलेक्ट्रेट कांफें्रंस में उनके पारफारमेंस देखे जाएंगे। जिनका पारफारमेंस अच्छा होगा और विधानसभा चुनाव के समय चुनाव आयोग के तीन साल के रेंज में नहीं आ रहे हाेंगे, तो उन्हें बरकरार रखा जाएगा। पता चला है, चार-पांच जिलों के कलेक्टरों से सरकार संतुष्ट नहीं है। ऐसे में उनकी छुटटी हो जाए तो आश्चर्य नहीं। इनमें नए जिलों के कलेक्टर भी शामिल हैं।

चेंज 

आर्इएएस मेंं न सही, मगर पुलिस महकमे में अगले हफते तक एक छोटी लिस्ट निकलने की पुख्ता खबर है। इनमें कुछ एडिशनल एसपी और दो-तीन एसपी होंगे। इनमें एक बड़े जिले के कप्तान के भी प्रभावित होने की खबर है। बाकी, 88 बैच के तीन अफसरों की डीपीसी के बाद ही पीएचक्यू और रेंज में कोर्इ बदलाव होंगे। तीनों का जनवरी में प्रमोशन डयू है। सुनने में आया है, पांच पोस्ट खाली रहने की वजह से समय पूर्व प्रमोशन के लिए कवायद शुरू हो गर्इ है। मगर इस बीच ये खबर भी चर्चा में है कि भारत सरकार ने पूछ दिया है कि पांच एडीजी होने के बाद भी जल्दबाजी क्या है। राज्य सरकार हालांकि छह महीने पहिले डीपीसी कर सकती है। अगर ऐसा हुआ तो जुलार्इ तक डीपीसी हो जाएगी।

टकराव

बात हो रही, पुलिस के प्रमोशन की तो तीन साल पहले डेपुटेशन पर गए डीआर्इजी प्रदीप गुप्ता ने आर्इजी बनने के लिए कोर्इ कसर नहीं उठा रख रहे हैं। स्वागत दास को प्रोफार्मा प्रमोशन देकर एडीजी बनाने के बाद तो गुप्ता की सिफारिशें और तेज हो गर्इ है। हवाला दिया जा रहा है दास का। दास छत्तीसगढ़ में कभी नहंी रहे मगर उन पर मेहरबानियां बरस रही हैं। और पुलिस मुख्यालय का कहना है, छत्तीसगढ़ लौटे बिना प्रमोशन नहीं मिलेगा। गुप्ता के रिटायर आर्इएएस ससुर अब राज्य के बड़े आर्इएएस अधिकारियों को फोन कर हेल्प मांग रहे हैं। देखना दिलचस्प होगा, राज्य के आर्इएएस आर्इपीएस अफसरों के बीच में गुप्ता की कितनी मदद कर पाते हैं।

सौ चूहे.....

राज्य के आर्इएफएस अधिकारी इन दिनों प्रींसिपल सिकरेट्री डीएस मिश्रा से बेहद खफा हैं। पिछले हफते कैम्पा की बैठक में मिश्रा आर्इएफएस अफसरों को डोमिनेट करने के लिए टिवटर से कागज डाउनलोड करके लाए थे। सीएस सुनील कुमार की मौजूदगी में कैम्पा की भर्राशाही पर उन्होंने अफसरों की जमकर खींचार्इ की। मिश्रा का गुस्सा हालांकि गलत नहीं था। कैम्पा के लिए केंद्र से मिले ढार्इ सौ करोड़ में तफरी के अलावा और कुछ नहीं हुआ है। उसी पैसे से जंबो टीम विदेश भी घूम आर्इ। अफसरों ने करोड़ों रुपए का वाट लगा दिया। लेकिन वन अफसरों की बातों में भी दम है। आर्इएफएस कहते हैं, मिश्रा को पहले अपनी ओर देखना चाहिए। दूसरों को 5 लाख तक की गाड़ी की बंदिशें हैं और खुद चलते हैं, 12 लाख की गाड़ी में। कृषि विभाग से हटने के बाद भी लंबे समय तक बीज विकास निगम की टवेटा रखे रहे। यहीं नहीं, एक्जीक्यूटिव क्लास में कर्इ बार विदेश घूम आए। सीएम और सीएस से भी बढि़यां चेम्बर है मिश्राजी का। याने सौ चूहे खाकर बिल्ली हज को चली।

अजूबा-2

पौल्यूशन बोर्ड कोरबा के रिजनल आफिसर बीएस ठाकुर का मामला राज्य के लिए अजूबा ही होगा। अजूबा इसलिए कि वे अपने परिवार के अकेले आदिवासी हैं। इनको छोड़कर पूरा परिवार सामान्य है और सबने सामान्य वर्ग से ही नौकरी पार्इ है। उनके पिता रायपुर में ही लंबे समय तक सामान्य कोटे से लेबर विभाग में काम किए और फिलहाल उनके भार्इ रायपुर एलआर्इसी आफिस में जनरल कोटे से हैं। दरअसल, नागपुर तरफ आदिवासी ठाकुर लिखते हैं। सो,  उन्होंने बुद्धि लगाकर आदिवासी का सर्टिफिकेट बनवाया और भोपाल में नौकरी हथिया ली। शिकायत हुर्इ तब तक छत्तीसगढ़ बन गया था और वे यहां तो सब चलता है। कौन पूछने वाला है। पौल्यूशन बोर्ड में शिकायतों की मोटी फाइल पर धूल की परतें बैठ गर्इ है। ठाकुर से जब पूछा गया कि आपके बच्चे भी आदिवासी कोटे का लाभ ले रहे होंगे, तो उनका जवाब सुनिये, मेरे बच्चे सामान्य वर्ग में हैं। अब पिता भी सामान्य और बच्चे भी सामान्य। सिर्फ वे एक आदिवासी। है ना अजूबा।

अंत में दो सवाल आपसे

1. राहुल गांधी के नाम पर राजधानी के अफसरों से कितने पेटी का चंदा वसूला गया?
2. लोकसभा में एंग्लो-इंडियन कोटे से मनोनित सदस्य इंगे्रड मैक्लाउड की नाराजगी से कांग्रेस को कुछ फर्क पड़ेगा? 

रविवार, 13 मई 2012

तरकश, 11 मई


बड़ी डीलिंग

इंजीनियरिंग शिक्षा के सौदागरों को सीबीआई के पकड़ने के बीच बीएड में भी एक बड़ी डीलिंग की खबर ंहै। स्कूल शिक्षा विभाग और उसके एससीआरटीसी ने आश्चर्यजनक ढं़ग से पिछले साल लेप्स हुई बीएड की 1000 सीटों पर दाखिला देने की अनुमति दे दी है। जबकि, सुप्रीम कोर्ट का नियम है, 30 सितंबर के बाद काउंसलिंग नहंी होनी चाहिए, भले ही सीट लेप्स क्यों न हो जाए। आखिर, आवश्यक मापदंड पूरा न करने की वजह से बीएड कालेजों को पिछले साल काउंसलिंग करने की इजाजत नहीं मिली थी। एसीएस स्कूल शिक्षा, सुनील कुमार के ये शब्द थे, मेरे रहते सवाल ही नहीं उठता। मगर उनके हटते ही कालेज वालों ने दिमाग लगाकर पिछले साल की भरपाई कर ली। एक कालेज में 100 सीटें हंै, इस बार 200 हो जाएंगी। सोचने की बात है, जो कालेज 100 छात्रों लायक नहीं थे, वे दुगुने लायक इंतजाम कैसे करंेगे। जाहिर है, पैसे दो, डिग्री ले जाओ, स्कीम चलेगा। छत्तीसगढ़ के बीएड कालेजों में यही तो हो रहा है। बंगाल, असाम, बिहार, महाराष्ट्र के लोग यूं ही यहां नहीं आ रहे। छत्तीसगढ़ वाला स्कीम वहां नहीं चलता। अनुमान है, सिर्फ बीएड से कालेज वाले हर साल 40 से 50 पेटी अंदर कर लेते हंै। छात्रों को निर्धारित फीस के अलावा फर्जी अटेंडेंस के लिए मोटी राशि पे करनी पड़ती है। और इसमें से पांच-सात परसेंट चढ़ावा चढ़ा दें तो कालेजों को क्या फर्क पड़ता है। तभी तो राजधानी में 50 पेटी में डीलिंग की जबर्दस्त चर्चा है।

तमाचा

इंजीनियरिंग कालेजों से थैली लेते हुए एआइसीटीई अफसरों को सीबीआई द्वारा रंगे हाथ पकड़ा जाना, दुर्ग पुलिस के गाल पर तमाचा जैसा ही है। तकनीकी विवि, तकनीकी शिक्षा संचालनालय के अफसरों समेत सूबे के ढाई दर्जन से अधिक कालेज मालिकों के खिलाफ पुख्ता शिकायत के बाद भी पुलिस अधिकारियों ने मानों हाथ बांध लिए थे। दुर्ग सीजेएम के निर्देश पर पुलिस को मजबूरी में पिछले साल सितंबर में अपराध दर्ज करना पड़ा। मगर इसके बाद वही, कार्रवाई में हीलाहवाला। कोर्ट की फटकार के बाद हर बार क्षमा याचना। तीन बार जांच अधिकारी बदल गए। भिलाई के इंस्पेक्टर संजय पुढीर ने दबा कर जांच शुरू कर दी तो एसपी ने उन्हें फौरन हटा दिया। इस साल जनवरी में डीजीपी की प्रेस कांफे्रंस में भी इस पर सवालों की बौछारें हुई थीं। मगर नतीजा जीरो रहा। अब छन-छन कर कुछ खबरें आ रही हैं.......कालेजों के कुछ खटराल संचालकों ने पुलिस के बड़े अधिकारियों से दो खोखा का सौदा कर उसकी सीडी बना ली और स्ट्रेटज्डी के तहत मार्केट में बात भी फैला दी। दावा है, कई लोगों के पास सीडी है। अगर ये खबर सच हैं तो पुलिस फिर कार्रवाई करने का साहस कैसे दिखाएगी।

बड़े खिलाड़ी

बिना मान्यता, बिना संबंद्धता और बिना एनओसी के कोर्सेज चला रहे इंजीनियरिंग कालेज संचालकों पर हाथ डालने से पुलिस के बचने की एक वजह राजनीतिक संरक्षण भी है। तकनीकी कालेज चलाने वाले सबके सब बड़े खिलाड़ी हैं। सरकार और विपक्ष, दोनों ओर का पैसा कालेजों में लगा है। कानून-व्यवस्था से जुड़े एक संसदीय सचिव के भाई और साले इस धंधे में वन टू का फोर कर रहे हैं, तो जरा सोचिए, दुर्ग इलाके में कांग्रेस के कई छत्रपों के होने के बाद भी सीबीआइ ट्रेप पर किसी का बयान क्यों नहीं आया। प्रदेश कांग्रेस के मीडिया प्रमुख शैलेष नीतिन त्रिवेदी ने भी नपा-तुला जवाब दिया, सामाजिक बुराइयां शिक्षा में भी आती जा रही है, सिस्टम के लिए हम सब जिम्मेदार हैं। जाहिर है, अपनी पुलिस के बूते की बाहर की बात है। जो भी उम्मीदें हैं, वो सीबीआई से है।

जुनूनी

वैसे तो आरटीआई कार्यकर्ताओं पर ब्लैकमेलिंग के भी आरोप लगते रहते हैं, मगर छत्तीसगढ़ में विकास सिंह जैसे जुनूनी युवक भी हैं, जो आरटीआई कार्यकर्ताओं और भ्रष्टाचार को लेकर बेचैन लोगों के लिए नजीर बन सकते हैं। उन्होंने प्रायवेट इंजीनियंिरग कालेजों के खिलाफ लड़ने में हार नहीं मानी। शासन, प्रशासन में सुनवाई नहीं हुई तो कोर्ट में परिवाद दायर किया। फिर भी पुलिस ने कार्रवाई नहीं की तो सीबीआई की मदद ली। और खुद उसी होटल में कमरा लेकर ठहर गए, जहां एआइसीटीई टीम थी। विकास को दबाने की कोशिशें कम नहीं हुई। भिलाई में उनके घर के सामने उपद्रव किया गया, गुडों ने रात में एक्सीवेटर से घर का बाउंड्री वाल तोड़ दिया। समझौता करने के लिए पुलिस अधिकारी भी घर पहुंचे। खबर है, उन्हें आधा खोखा तक का आफर दिया गया। मगर टस-से-मस नहीं हुए। उनकी कोशिशों से एआइसीटीई सेंट्रल रेंज के डायरेक्टर पीएम मिश्रा सस्पेंड हुए, टीम के तीन सदस्य और 3 कालेज वाले जेल गए और छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश और गुजरात के 126 तकनीकी कालेजों की सीबीआई ने जांच शुरू कर दी है।

एलेक्स का डेपुटेशन 

नक्सलियों के चंगुल से रिहा होने के बाद सुकमा कलेक्टर एलेक्स पाल मेनन के दिल्ली डेपुटेशन पर जाने की खबर है। वे जयराम रमेश के पंचायत विभाग में जा सकते हैं। नक्सलियों की रिहाई के बाद मलकानगिरी के कलेक्टर आर विनील कृष्णा भी रमेश के साथ काम कर रहे हैं। रमेश, एलेक्स को पर्सनली जानते हैं और धमतरी दौरे में एलेक्स के काम को देखकर रमेश ने सुझाया था कि ऐसे अफसरों को बस्तर में तैनात करना चाहिए। हालांकि, इस बीच एक खबर ये भी है, वे मूल प्रदेश तमिलनाडू जा सकते हैं। कैडर चेंज कराना यद्यपि टेढ़ा काम होता है। मगर अपहरण के बाद पीएमओ टांग नहंी अड़ाएगा। इस बारे में तमिलनाडू की सीएम जयललीता के प्रधानमंत्री से बात करने की चर्चा है। तय मानिये, एलेेेेक्स छत्तीसगढ़ में तो नहीं रहेंगे।

रेंज में चेंज

88 बैच के तीनों आईपीएस अधिकारियों का समय से पहले प्रमोशन हो सकता है। आखिर, मुकेश गुप्ता, संजय पिल्ले और आरके विज जैसे पावरफुल अफसर हैं, इस बैच में। वैसे, तीनों का जनवरी मे ंप्रमोशन ड्यू है। इससे पहले भी कई बार ऐसा हुआ है और आईएएस में तो समय से पहले प्रमोशन का तो टे्रंड बन गया है। वैसे, एडीजी के 10 में से पांच पोस्ट खाली भी हंै। और रोड़़ा सिर्फ भारत सरकार की अनुमति का है। खबर है, इसके लिए बातचीत शुरू हो गई है। और गुप्ता और विज प्रमोट होंगे, तो रेंज में निश्चित तौर पर कुछ चेंजेज होंगे।

जूनेजा रिलीव

89 बैच के आईपीएस अधिकारी अशोक जूनेजा ड्रग एंड नारकोटिक्स विभाग, दिल्ली से 8 मई को रिलीव हो गए। 2009 में वे यहां से डेपुटेशन पर दिल्ली गए थे। वे 15 मई के आसपास रायपुर आएंगे। जूनेजा राज्य के पहले आईपीएस होंगे, जिनके लिए बिलासपुर आईजी का पोस्ट रिजर्व रखा गया है। राहुल शर्मा एपीसोड में जीपी सिंह के हटने के किसी की पोस्टिंग नहंी हुई है। आईजी सीआईडी पीएन तिवारी अस्थायी चार्ज में रायपुर से ही बिलासपुर को देख रहे हैं। छत्तीसगढ़ में अच्छी पोस्टिंग का रिकार्ड भी जूनेजा के ही नाम है। रायपुर, दुर्ग में एसएसपी, बिलासपुर में एसपी, फिर खेल और इसके बाद ट्रांसपोर्ट। और अब बिलासपुर रेंज के आईजी।  

अंत में दो सवाल आपसे?

1. अपहरण के दौरान नक्सलियों ने कैसा सलूक किया, इस बारे में सुकमा कलेक्टर एलेक्स पाल मेनन मुंह    क्यों नहीं खोल रहे हैं? 
2. कांग्रेस के किस सांसद ने सड़क के लिए प्रस्तावित जमीन पर रेस्टोरेंट बना दिया है?

शनिवार, 5 मई 2012

तरकश, 6 मई



क्रायसिस मैनेजमेंट-1

एलेक्स पाल मेनन के अपहरण के बाद क्रायसिस मैनेजमेंट में रमन के तीन अफसरों की भूमिका सबसे अहम रही। चीफ सिकरेट्री सुनील कुमार, प्रींसिपल सिकरेट्री बैजेंद्र कुमार और सरकार के सबसे भरोसेमंद एवं प्रभावशाली अधिकारी अमन सिंह ने ऐसी स्टे्रटेज्डी बनाई कि नक्सलियों के वार्ताकारों की ज्यादा चल नहीं सकी। कहां महीने भर के पहले रिहाई न होने का दावा किया जा रहा था। आखिर, ओड़िसा के विधायक झीन हिकाका की 33 वें दिन ही रिहाई हो सकी। 30 अप्रैल की रात 8.20 बजे प्रमुख सचिव गृह एनके असवाल समझौते के मसौदे पर हस्ताक्षर करने के लिए मंत्रालय से पहुना के लिए रवाना हुए, उस समय भी किसी को यकीं नहीं हुआ। मगर 15 मिनट बार जब रिहाई की बात आई तो सब अवाक थे। तीनों अधिकारियों ने रणनीति के तहत नक्सलियों की ओर से वार्ताकारों के नाम आने का इंतजार किया। 57 बैच के रिटायर आईएएस अधिकारी बीडी शर्मा का नाम आया तो उनकी काट के लिए मध्यप्रदेश की रिटायर चीफ सिकरेट्री निर्मला बुच को आगे बढ़ा दिया गया। बुच को आयरन लेडी माना जाता है। सो, स्टे्रटज्डी सफल रही। तीन दिन की पांच दौर की चर्चा में मामला ओके हो गया। जो देरी हुई वह नक्सलियों की ओर से वार्ताकारों के चयन और उनके रायपुर आने मंे।

क्रायसिस मैनेजमेंट-2

सुकमा कलेक्टर की रिहाई के प्रयास तो एक साथ कई स्तर पर चल रहे थे मगर सरकार के रणनीतिकारों ने एहतियात के तौर पर इसका पूरा नियंत्रण अपने पास रखा। अलबत्ता, ओड़िसा सरकार से नसीहत लेते हुए नक्सलियों के मध्यस्थों से खुद बात करने के बजाए फौरन वार्ताकार अपाइंट कर दिया। दरअसल, ओड़िसा सरकार से यही चूक हुई थी। वहां के होम सिकरेट्री नक्सली वार्ताकारों से बात करते रहे और मामला लंबा खींच गया। आपने वाच किया होगा, आपरेशन एलेक्स में इस बात का बखूबी ध्यान रखा गया कि मामला बिगड़े तो सीएम पर कोई बात न आए। और इसी रणनीति के तहत मंत्रिमंडलीय उपसमिति बना दी गई। उपसमिति सदैव मध्यस्थों के संपर्क में रही।

टीआरपी

3 मई को जिस समय एलेक्स की रिहाई होने पर सुकमा में दिवाली मनाई जा रही थी, उस समय उनके सुरक्षाकर्मी किशन कुजूर की तेरहीं चल रही थी। एलेक्स को बचाने के लिए एके-47 से गोलियां बरसाकर एक नक्सली को मार गिराने वाले अमजद अली खान के धमतरी स्थित घर मेें मातम छाया हुआ था। मगर संवेदनहीनता की पराकाष्ठा......इन 13 दिनों में किसी का भी ध्यान उनकी ओर नहीं गया। बे्रकिंग न्यूज में होड़ लेने वाले चैनलों का और न ही विश्वसनीयता का दावा करने वाले प्रिंट मीडिया का। नक्सलियों से घिर जाने के बाद भी अदम्य बहादुरी दिखाने वाले वीर जवान अमजद की पत्नी की किसी ने सुध ली और न ही उनके बच्चों की। चैनलों के एंकर एलेक्स की पत्नी आशा के धैर्य की तारीफ के पुल बांधकर थके जा रहे थे। आशा तक पल-पल की सूचना पहुंचाकर उसका श्रेय लुटे जा रहे थे। काश, कोई अमजद की पत्नी से भी पूछा होता, अब उसके घर कैसे चलेंगे, उसके बच्चों की परवरिश कैसे होंगी। मगर ये बात भी तो सही है, कुजूर और अमजद के टूटे-फूटे घर दिखाने से टीआरपी थोड़े ही बढ़ती।

कलेक्टर साब

छत्तीसगढ़ के लोगों ने कई तेज कलेक्टरों को देखा है, जिनका जिले में नाम चलता था। मगर अब दिलीप वासनीकर जैसे भी कलेक्टर हैं........। मंत्रालय में पोस्टेड रहने के दौरान सरकारी फोन के 28 सौ रुपए बकाये के लिए एक प्रायवेट टेलीफोन कंपनी ने वासनीकर को तंगा डाला। जनवरी में गरियाबंद के कलेक्टर बन जाने के बाद भी बिल के लिए कंपनी के शोहदे उनके पीछे पडे रहे। पिछले हफ्ते कंपनी के वकील ने उन्हें फोन करके कहा, आपके नाम से दिल्ली हाईकोर्ट से गैर जमानती वारंट निकला है। हाईकोर्ट का नाम क्या सुनना था, वासनीकर को मानों तिहाड़ जेल नजर आने लगा। उन्होंने रायपुर में अपने परिजनों को फोन कर तत्काल बिल जमा करवा दिया। कलेक्टर जिले का डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट भी होता है। इस नाते उसके पास असीमित अधिकार होते हैं। मगर अधिकार का प्रयोग करना भी तो आना चाहिए। सुनील कुमार को ऐसे आईएएस के लिए रिफे्रशर कोर्स चलाना चाहिए।    

बड़ी उपलब्धि

सुकमा कलेक्टर के अगवा होने का एक लाभ जरूर हुआ, वह है, मनीष कुंजाम के रूप में सरकार को एक लोकल चैनल मिल गया है। कंजाम हां-ना करते हुए मेनन को दवाइयां पहुंचाने के साथ एक रात जंगल में भी बिता आए। मध्यस्थता नहीं करूंगा, नहीं करूंगा कहते-कहते एलेक्स को लेने के लिए जंगल भी चले गए। लिखने की बात नहीं है, आप समझ सकते हैं, नक्सलियों के साथ उनकी केमेस्ट्री कैसी होगी। अब आगे ऐसी कोई नौबत आई तो अग्निवेश जैसे लोगों की ओर मुंह ताकना नहीं पड़ेगा। इससे पहले 2005 में बस्तर में इंस्पेक्टर प्रकाश सोनी का अपहरण हुआ था तो उन्हें रिहा कराने के लिए सरकार को आंध्र के क्रांतिकारी कवि गदर और बारबड़ा राव की सहायता लेनी पड़ी थी। इसके बाद चार जवानों का मामला हुआ तो अग्निवेश ने मध्यस्थता की। देश के सर्वाधिक नक्सल प्रभावित राज्य में हमेशा यह कमी महसूस की जा रही थी कि उसके पास नक्सलियों से बातचीत करने के लिए कोई लोकल चैनल नहीं है। मगर अब ऐसा नहीं होगा।

रेंज में बदलाव

88 बैच के तीनों आईपीएस अधिकारियों का समय से पहले अगर प्रमोशन हो जाए तो आश्चर्य नहीं। मुकेश गुप्ता, संजय पिल्ले और आरके विज जैसे पावरफुल अफसर जो हैं इस बैच में। वैसे, तीनों का जनवरी मे ंप्रमोशन ड्यू है। एडीजी के 10 में से पांच पोस्ट खाली भी हंै। और रोड़़ा सिर्फ भारत सरकार की अनुमति का है। इसकी भी प्रक्रिया शुरू हो गई है। संकेत हैं, अगले महीने तक इस पर मुहर लग जाए। गुप्ता और विज के एडीजी बनने की खबर के बाद रायपुर और दुर्ग के आईजी बनने के लिए पीएचक्यू में अभी से जोर-आजमाइश शुरू हो गई है। प्रमोशन के बाद पुलिस महकमे में जून अंत में एक बड़ा बदलाव भी होगा। गुप्ता का इंटेलिजेंस और पिल्ले का वित्त और प्रबंध बना रह सकता है। विज को प्रशासन देने की खबर है। पवनदेव को अब रेंज में जाएंगे। रेंज के लिए ंअशोक जूनेजा, अरूणदेव गौतम और हिमांशु गुप्ता के भी नाम हैं। अंदर की खबर है, जूनेजा बिलासपुर के बजाए रायपुर या दुर्ग संभालना चाहेंगे। बिलासपुर रेंज पैसा-कौड़ी के हिसाब से तो ठीक है मगर उसे मेन स्ट्रीम का रेंज नहीं माना जाता।

अजूबा

ऐसा अजूबा छत्तीसगढ़ में ही संभव है। आदमी एक और पगार दो-दो जगह से। सूचना आयोग का एक कर्मचारी आयोग के साथ ही मंत्रालय से भी वेतन ले रहा है। आयोग का यह कर्मचारी सामान्य प्रशासन विभाग के एक डिप्टी सिकरेट्री के घर तैनात है। और जीएडी में अतिरिक्त कुछ है नहीं। सो, साब ने दिमाग लगा डाला। बताते हैं, वाउचर पर कर्मचारी से हस्ताक्षर करवाकर पैसा अंदर हो जा रहा है। सूचना के अधिकार में इसकी जानकारी मांगे जाने के बाद से डिप्टी सिकरेट्री के हाथ-पांव फुल गए है। आरटीआई लगाने वाला चूकि कांग्रेसी हैं, इसलिए मामले को रफा-दफा कराने के लिए डिप्टी सिकरेट्री जोगी सरकार के एक पूर्व मंत्री की शरण में हैं।

अंत में दो सवाल आपसे

1. ग्राम सुराज की सबसे अधिक पब्लिसिटी किसे मिली, रमन को या एलेक्स मेनन को ?
2. स्वास्थ्य का हवाला देते हुए किस निगम के चेयरमैन ने सरकार से 27 लाख की कार मांगी है ?