शनिवार, 20 अप्रैल 2024

Chhattisgarh Tarkash 2024: ज्वाईनिंग से पहले पोस्टिंग!

 Chhattisgarh Tarkash: तरकश, 21 अप्रैल 2024

संजय के. दीक्षित

ज्वाईनिंग से पहले पोस्टिंग!

आईएएस सोनमणि बोरा सेंट्रल डेपुटेशन से छत्तीसगढ़ लौट आए हैं। ऋचा शर्मा भी अगले महीने आ रही हैं। सामान्य प्रशासन विभाग जल्द ही सचिव स्तर पर नई पोस्टिंग आदेश जारी करेगा। इसमें इन दोनों वरिष्ठ अधिकारियों को पोस्टिंग दी जाएगी। वैसे, ऋचा को छत्तीसगढ़ में ज्वाईनिंग से पहले भी सरकार चाहे तो पोस्टिंग दे सकती है। इससे पहले भी ऐसा हो चुका है। रमन सिंह सरकार की तीसरी पारी यानी 2015 में डॉ0 आलोक शुक्ला को छत्तीसगढ़ लौटने से पहले हेल्थ और फूड जैसे बड़े विभाग का प्रिंसिपल सिकरेट्री अपाइंट कर दिया गया था। तब हमने इसी तरकश में लिखा था कि सरकार ने आलोक का लाल जाजम बिछा कर स्वागत किया। हालांकि, विधानसभा चुनाव 2008 और लोकसभा चुनाव 2009 के दौरान आलोक के मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी रहते अफसरों के इतने विकेट उड़े थे कि सरकार काफी नाराज हो गई थी। गनीमत रहा आलोक शुक्ला लोकसभा चुनाव के तुरंत बाद डेपुटेशन पर दिल्ली चले गए। मगर बाद में सरकार से उनके रिश्ते सुधर गए। दिल्ली में अमन सिंह से उनकी मुलाकात हुई और सारे गिले-शिकवे दूर हो गए थे। ये अलग बात है कि मधुरता ज्यादा दिन चली नहीं। कुछ महीने में ही...नॉन घोटाले के बाद सरकार और आलोक के बीच संबंध बिगड़ गए।

DGP की छुट्टी?

छत्तीसगढ़ में लगातार यह दूसरा लोकसभा चुनाव होगा, जब चुनाव आयोग ने किसी बड़े अफसर पर कार्रवाई नहीं की है। जबकि, विधानसभा चुनाव 2023 में आयोग ने दो कलेक्टर और तीन एसपी के साथ कई अफसरों की छुट्टी कर दी थी। बहरहाल, उपर में आलोक शुक्ला का जिक्र हुआ तो लोकसभा चुनाव 2009 का एपिसोड बरबस याद आ गया। उसा दौरान डॉ0 आलोक मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी थे। तब चुनाव का ऐलान होते ही बिलासपुर कलेक्टर हटा दिए गए तो उसके बाद डीजीपी विश्वरंजन को चुनाव आयोग ने खो कर अनिल नवानी को उनकी जगह बिठा दिया था। दरअसल, 2009 में विश्वरंजन का जलवा चरम पर था। डीजीपी ओपी राठौर की असामयिक मौत के बाद विश्वरंजन को आईबी से बुलाकर लाया गया था। उस समय वे छत्तीसगढ़ के सबसे सीनियर अफसर थे। चीफ सिकरेट्री पी जाय उम्मेन उनसे पांच बैच जूनियर रहे। पुराने लोगों को याद होगा, विश्वरंजन मंत्रालय पहुंचते थे, तो बड़े-बड़े आईएएस कुर्सी से खड़े हो जाते थे। उनके काफिले में पायलट और फॉलो गाड़ी चलती थी। खैर, बात लोकसभा चुनाव 2009 की। जैसा कि कुछ याद है, निर्वाचन से संबंधित चुनावी मीटिंग में विश्वरंजन ने निर्वाचन के अफसरों को किसी बात पर हड़का दिया था। इसके बाद विश्वरंजन को हटा दिया गया। हालांकि, विश्वरंजन ने एक अंग्रेजी दैनिक अखबार में आर्टिकल लिखा था, जिसमें आईएएस अधिकारियों पर कुछ कमेंट किए थे। अब ये स्मरण नहीं हो रहा कि चुनाव आयोग द्वारा हटाए जाने के बाद उन्होंने ये आर्टिकल लिखा था या हटाने से पहले। मगर कुल जमा सार यह है कि विश्वरंजन को हटा दिया गया। अलबत्ता, आचार संहिता समाप्त होते ही फिर से रमन सरकार ने उन्हें डीजीपी नियुक्त कर दिया था।

पूत, सपूत कैसे?

आईएएस रेणु पिल्ले और पूर्व आईपीएस संजय पिल्ले की बेटी आईपीएस सलेक्ट हुई है। इससे दो साल पहले उनका बेटा अक्षय आईएएस बना था। अक्षय को उड़ीसा कैडर मिला है। छत्तीसगढ़ का यह फर्स्ट अफसर कॅपल होगा, जिनके दोनों बच्चे देश की शीर्षस्थ सर्विस में सलेक्ट हुए हैं। वैसे ऐसे मामले कम ही होते हैं। हालांकि, इसी तरह का एक सुखद संयोग मध्यप्रदेश के 1989 बैच के आईपीएस मुकेश जैन के साथ भी हुआ है। एक बेटा उनका 2021 में आईएएस बना और दूसरा इस बार। नौकरशाही में इसे बड़ा सम्मान के साथ देखा जाता है। क्योंकि, ज्यादतर बड़े अफसरों के बच्चे उनके उम्मीदों पर खरे नहीं उतरते। इसकी वजह यह है कि आईएएस, आईपीएस बनने के बाद माता-पिता जमीन से दो इंच उपर हो जाते हैं तो उनकी संतानें चार इंच। पढ़ाई एक तपस्या है...महंगे, लग्जरी और नावाबी रहन-सहन में ये कतई संभव नहीं। पिताजी लोग दिन-रात डीएमएफ, कमीशन, जमीन, प्लॉट और इंवेस्टमेंट में दो नंबर का पैसा खपाने में लगे रहेंगे तो फिर पूत सपूत कैसे निकलेगा।

मंत्री ने दिया ठेके में विभाग

अभी तक आपने सड़क, बांध जैसे निर्माण कार्यों को ठेके पर दिए जाने की बातें सुनी होगी। मगर छत्तीसगढ़ के एक मंत्री ने अनोखा आईडिया निकालते हुए पूरे विभाग को एक लक्ष्मीपुत्र के हवाले कर दिया है। मंत्रीजी ने सभी तरफ मैसेज करा दिया है...फलां आदमी पूरा काम देखेगा। हालांकि, विभाग का काम जून के बाद ही चालू होगा, मगर वीआईपी चौराहे पर स्थित एक लग्जरी कालोनी में पूरे ऐश्वर्य के साथ रहने वाले लक्ष्मीपुत्र ने सारे सप्लायरों को बुलाकर बताना शुरू कर दिया है...20 परसेंट मंत्रीजी को, 10 परसेंट मेरा...बाकी तुमलोग जानो। उन्होंने एडवांस लेकर अभी से जिले भी अलॉट करना शुरू कर दिए हैं...फलां जिले में सप्लाई ये करेगा तो फलां में वो। जिलों के मुलाजिम परेशान हैं कि सप्लायार जब 30 परसेंट उपर दे देगा तो हमलोगों का क्या होगा? जाहिर है, कुछ-न-कुछ जिलों में भी बंटेगा। फिर बीच में कुछ सरकारी एजेंसियां हैं, वहां के अफसरों को भी चाहिए। याने 100 रुपए के काम में 50 पैसा उपर लेनदेन में बंट जाएगा। अब काम क्या होगा, इसे आप समझ सकते हैं।

तीन सीटों पर फोकस

लोकसभा चुनाव के संदर्भ में छत्तीसगढ़ के सियासी पंडित जो भी आंकलन करें, बीजेपी और संघ ने तीन लोकसभा सीटों पर पूरी ताकत लगा दी है। सबसे टॉप पर जिन तीन सीटों को रखा गया है, उनमें कांकेर, राजनांदगांव और जांजगीर शामिल हैं। इन सीटों पर विशेष तौर से फोकस और प्लानिंग के साथ काम किया जा रहा है। जाहिर है, बीजेपी बाकी आठ सीटों को खतरे से बाहर मानकर चल रही है। बीजेपी के रणनीतिकारों की कोशिश है कि इन तीन में से वोटिंग का डेट आते-आते कम-से-कम दो और क्लियर होने की स्थिति बन जाए। जाहिर है, बीजेपी की टॉप प्रायरिटी वाली तीन सीटों से कांकेर और राजनांदगांव में 26 अप्रैल और जांजगीर में सात मई को वोटिंग होगी।

कांग्रेस 2 से आगे नहीं

छत्तीसगढ़ कांग्रेस का गढ़ रहा है। मगर आप आंकड़ों को देखेंगे तो पता चलेगा सिर्फ विधानसभा चुनाव के मामले में। लोकसभा चुनाव में बीजेपी को हमेशा ठीकठाक सीटें मिलती रही हैं। पिछले 10 चुनावों की बात करें तो सिर्फ एक बार 1991 के लोकसभा चुनाव में, जब पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की आत्मघाती हमले में मौत हो गई थी, कांग्रेस को 11 की 11 लोकसभा सीटें मिली थी। इसके अलावा सभी लोकसभा चुनावों में बीजेपी को छह, सात, आठ सीटें मिलती रही। यहां तक कि 2018 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी का सूपड़ा साफ हो गया था। 15 साल सत्ता में रहने वाली सरकार 15 सीटों पर सिमट आई थी। तब राजनीतिक समीक्षक भाजपा को पांच से अधिक सीटें नहीं दे रहे थे। मगर नतीजे आए तो बीजेपी की झोली में नौ सीटें थी।

ये भी फैक्ट

तत्कालीन प्रधानमंत्री अटलबिहारी बाजपेयी ने 1999 के लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान रायपुर में वादा किया था कि आपलोग बीजेपी को जीताएं हम छत्तीसगढ़ अलग राज्य बनाकर देंगे। तब शायद लोगों को उनके कहे पर उस तरह का एतबार नहीं हुआ। 98 में बीजेपी को सात सीटें मिली थी, इस घोषणा के बाद 99 में सिर्फ एक सीट बढ़ी। यानी 11 में आठ सीट। लेकिन, नवंबर 2000 में अटलजी ने छत्तीसगढ़ राज्य का गठन कर दिया तो लोग इतने प्रसन्न हुए कि 2004 से लेकर 2014 तक 11 में 10 सीटें बीजेपी को मिलती रहीं। 2019 में भी इसमें से सिर्फ एक सीट कम हुई है। अब देखना है कि अटलजी ने बीजेपी के पक्ष में छत्तीसगढ़ में हवा का रुख बदला था, वह इस बार बरकरार रहेगा?

अंत में दो सवाल आपसे

1. सतनामी समाज के गुरू को पार्टी में शामिल करने और उनके बेटे को विधानसभा का टिकिट देने के बाद भी बीजेपी दलित वोटों को क्यों नहीं साध पा रही?

2. देश के एक प्रभावशाली औद्योगिक समूह के अफसरों को बुलाकर निर्देश देने वाले बीजेपी के किस बड़े नेता का पर कतर दिया गया?


शनिवार, 13 अप्रैल 2024

Chhattisgarh Tarkash 2024: आईएएस अब बीमार नहीं

 तरकश, 14 अप्रैल 2024

संजय के. दीक्षित

आईएएस अब बीमार नहीं

चुनाव ड्यूटी के नाम से सरकारी मुलाजिमों को ही नहीं, आईएएस अधिकारियों को भी पसीना आने लगता है। गिनती के अफसर होंगे, जिन्हें चुनाव आयोग के आब्जर्बर बनाए जाने से तकलीफ नहीं होती। वरना, बजरंगबली याद आने लगते हैं। वो तब, जब चुनाव आयोग इसके लिए अलग से हैंडसम पारिश्रमिक देता है। उपर से जिस जिले में चुनाव कराने जाएं, वहां जलजला होता है....कलेक्टर, एसपी आगे-पीछे करते रहते हैं। फिर भी चुनाव से बचने सौ बहाने। हालांकि, 2003 के विधानसभा चुनाव के बाद अफसर अब बीमारी का बहाना नहीं बना रहे। दरअसल, उस समय दो आईएएस अधिकारियों ने गंभीर बीमारी का हवाला देते हुए चुनाव आयोग से नाम काटने आग्रह किया था। इस पर आयोग ने उन्हें दिल्ली आकर एम्स के मेडिकल बोर्ड के सामने पेश होने का आदेश दिया था...ताकि पता चला सके कि अफसर को कितनी गंभीर बीमारी है। आयोग का लेटर मिलते ही दोनों आईएएस अधिकारियों की बीमारी काफूर हो गई और तुरंत इलेक्शन ड्यूटी की सहमति दे दी। इनमें से एक बेचारे नौकरी से बाहर हो गए और दूसरे अभी काफी सीनियर हो चुके हैं।

रिकार्ड इलेक्शन ड्यूटी

छत्तीसगढ़ के आईएएस अफसर इलेक्शन ड्यूटी को भले ही बिदकते हैं मगर इसी सूबे में दो ऐसे आईएएस अफसर रहे हैं, जिन्होंने इलेक्शन ड्यूटी का रिकार्ड बनाया है। इनमें पूर्व मुख्य सचिव सुनील कुजूर और वर्तमान सिकरेट्री भुवनेश यादव का नाम शामिल हैं। दोनों ने नौ से अधिक विधानसभा और लोकसभा चुनाव कराएं हैं। कुजूर बाद में छत्तीसगढ़ के सीईओ भी रहे। अबकी पहली बार छत्तीसगढ़ की दो महिला आईएएस की भी चुनाव में ड्यूटी लगाई गई है। पहले इफ्फत आरा को चुनाव आयोग ने आब्जर्बर बनाया। और अब, तंबोली फकीरभाई अय्याज के सेंट्रल डेपुटेशन पर जाने से उनकी जगह किरण कौशल की ड्यूटी लगाई गई है।

ब्लैकलिस्टेड नहीं

चुनाव आयोग किसी कलेक्टर, एसपी पर अगर कार्रवाई करता है तो उसका नाम काली सूची में डाल देता है। उसे फिर किसी चुनाव में कोई जिम्मेदारी नहीं दी जाती। याद होगा, 2008 के विधानसभा चुनाव में आयोग ने एक कलेक्टर को हटाया था। सरकार ने रिजल्ट आने के बाद उसे फिर से दूसरे जिले का कलेक्टर बना दिया पर आयोग ने 2009 के लोकसभा चुनाव के समय फिर हटा दिया था। बहरहाल, पिछले विधानसभा चुनाव में दो कलेक्टर और तीन एसपी हटाए गए थे, आयोग उनका नाम ब्लैकलिस्टेड से हटा दिया है। जाहिर है, दुर्ग एसपी शलभ सिनहा बस्तर में एसपी हैं और वे चुनाव करवा रहे हैं। हटाए गए दोनों कलेक्टर संजीव झा और तारन प्रकाश सिनहा को आयोग ने आब्जर्बर बनाया है। बताते हैं, इन पांच में से एक अफसर ने कार्रवाई के बाद चुनाव आयोग में प्रेजेंटेशन दिया था। उन्होंने बताया था कि चुनाव की तैयारियों के लिए क्या-क्या काम किए उन्होंने। आयोग इससे संतुष्ट होकर सभी को आरोपों से बरी कर दिया।

50 लाख की कंपनी, अरबों में

किसी एक विभाग में सप्लाई करके कोई कंपनी अगर पांच साल में एक हजार गुना अपनी पूंजी बढ़ा लेती है, तो यह चमत्कार छत्तीसगढ़ में ही संभव है। पहले हम बताते हैं, 2007 में मलेरिया और उपकरण खरीदी घोटाला हुआ था, उसमें डायरेक्टर, ज्वाइंट डायरेक्टर समेत कई बड़े अफसर जेल गए थे। बाद में इसकी सीबीआई जांच भी हुई। बहरहाल, छत्तीसगढ़ की रमन सिंह सरकार ने इस कांड के बाद स्वास्थ्य विभाग के खटराल अधिकारियों से खरीदी का काम ले कर सीजीएमएस बना दिया। याने छत्तीसगढ़ मेडिकल सर्विसेज कारपोरेशन। इसका गठन इस मकसद से किया गया कि सरकारी अस्पतालों को टाईम पर, क्वालिटीयुक्त दवाइयां उपलब्ध होंगी...एक्सपर्ट लोग कंपनियो से बारेगेनिंग कर वाजिब मूल्य पर दवाइयां खरीदेंगे। इसके अलावा सरकार का ये भी मानना था कि डॉक्टर लोग खरीदी वगैरह ठीक से नहीं कर पाते...प्रोफेशन लोग यह काम बेहतर ढंग से कर पाएंगे मगर सीजीएमसी के अफसरों ने ऐसा गुल खिलाया कि छत्तीसगढ़ की कंपनियां मालामाल हो गई। अभी 290 करोड़ की सप्लाई करने वाली कंपनी चर्चा में है, पांच साल पहले उसका टर्न ओवर 50 लाख था, वह अब बढ़कर करीब 500 खोखा हो गया है। जब ढाई रुपए के सौल्यूशन को तीन हजार रुपए में सप्लाई किया जाएगा तो कंपनियां फलेंगे-फूलेंगी ही। सीजीएमएससी पिछले पांच बरसों से बड़े दलालों और माफियाओं का अड्डा बन गया है। उसके अफसरों को आम आदमी के स्वास्थ्य से क्या वास्ता! उसका मकसद कंपनियों को मोक्ष प्राप्त करवाना है।

डिमोशन

संघ के एक सीनियर पदाधिकारी का डिमोशन हो गया। बताते हैं, सरकार में किसी नियुक्ति के लिए उन्होंने संघ के भीतर बात नहीं रखी। अलबत्ता, किसी को पता नहीं चला। जब नियुक्ति की खबर मीडिया में आई तो संघ के कान खड़े हुए। बात उपर तक पहुंची और भाई साहब को किनारे कर दिया गया। असल में, संघ की ऐसी व्यवस्था है कि सीधे सरकार से नियुक्ति नहीं करा सकते। पहले संघ में प्रस्ताव रखा जाता है। फिर चर्चा होती है। उसके बाद नाम संगठन मंत्री को भेजे जाते हैं। और वहां से फिर सरकार के पास जाता है। भाजपा शासित सभी राज्यों में लगभग यही सिस्टम है।

पांच सीटों पर चुनाव

छत्तीसगढ़ में लोकसभा की 11 सीटें हैं। इनमें कुछ बरसों से ऐसा ट्रेंड चल रहा कि लोकसभा की सीटें जिस पार्टी को मिलती है, लगभग एकतरफा जैसी स्थिति होती है। लोकसभा चुनाव 2019 के नतीजे भी ऐसे ही रहे। बीजेपी को नौ और कांग्रेस को दो। जबकि, सियासी पंडितों द्वारा बीजेपी को पिछले बार चार-से-पांच सीटें दी जा रही थी। इसकी वजह भी थी। 15 साल सरकार चलाई पार्टी 15 सीटों सिमट गई थी। नेताओं में नैराश्य आ गया था। कोई उत्साह नहीं। भगवान भरोसे चुनाव लड़ा गया। पर मोदी मैजिक की वजह से 11 में से 9 सीटें बीजेपी की झोली में आ गई तो राजनीतिक प्रेक्षक भी हतप्रभ रह गए। खैर बात...अब इस लोकसभा चुनाव 2024 की। चार महीने तक सत्तानशीं रही कांग्रेस पार्टी छह सीटों पर कहीं दिखाई नहीं पड़ रही। ये सीटें हैं...रायपुर, दुर्ग, बिलासपुर, जांजगीर, रायगढ़, सरगुजा। रायपुर में बृजमोहन अग्रवाल जीत के लिए नहीं लड़ रहे। वे रिकार्ड बनाने की कोशिश में हैं। ताकि, दिल्ली की सियासत में सम्मानजनक हैसियत बन जाए। जिन पांच सीटों पर मुकाबला प्रतीत हो रहा, भले ही वह परसेप्शन के आधार पर हो...उनमें बस्तर, कांकेर, राजनांदगांव, महासमुंद और कोरबा शामिल हैं। वैसे, बीजेपी के रणनीतिकारों को चार महीने पहले विधानसभा चुनाव में 35 सीटें जीतने वाली कांग्रेस को हल्के में नहीं लेनी चाहिए। छत्तीसगढ़ कांग्रेस का गढ़ रहा है। बीजेपी को ध्यान रखना चाहिए....विधानसभा चुनाव 2023 में उसे दलितों के वोट नहीं मिले। उपर से मुस्लिम और ईसाई समाज के वोट कांग्रेस को एकतरफा मिलते ही हैं। उदाहरण के तौर पर बिलासपुर लोकसभा सीट को ले सकते हैं। बिलासपुर में कांग्रेस बेहद कमजोर स्थिति में है। मगर वहां मुस्लिम, क्रिश्चियन, दलित और यादव वोटों का समीकरण ऐसा है कि बीजेपी जीतेगी जरूर मगर बाहरी प्रत्याशी होने के बाद भी लीड पिछले बार से कम हो सकती है। क्योंकि, देवेंद्र यादव को मुस्लिम, क्रिश्चियन और दलित वोटों के साथ अब यादव के वोट भी जुड़ जाएंगे।

अंत में दो सवाल आपसे

1. एक महिला पुलिस अधीक्षक को एक से बढ़कर एक कलेक्टर क्यों मिल जा रहे?

2. इस बात में कितनी सत्यता है कि आबकारी घोटाले में एक बड़ी गिरफ्तारी होने वाली है?


शनिवार, 6 अप्रैल 2024

Chhattisgarh Tarkash 2024: नो कैबिनेट मिनिस्टर

 तरकश, 7 अप्रैल 2024

संजय के. दीक्षित

नो कैबिनेट मिनिस्टर 

जब छत्तीसगढ़ नहीं बना था, तब केंद्र की राजनीति में छत्तीसगढ़ का दबदबा होता था। विद्याचरण शुक्ल 23 साल के उम्र में केंद्र में कैबिनेट मंत्री बन गए थे। हालांकि, उनसे अलावे पुरूषोतम कौशिक और बृजलाल वर्मा भी थोड़े दिनों के लिए केंद्र में कैबिनेट मंत्री रहे। मगर नाम कमाया विद्या भैया ने। ये कहने में कोई हर्ज नहीं कि विद्या भैया के नाम से छत्तीसगढ़ और रायपुर की देश में पहचान बनी। विद्या भैया ने छत्तीसगढ़ को दिया भी बहुत कुछ...कोलकाता से पहले रायपुर में दूरदर्शन केंद्र खुल गया था। रायपुर को काफी पहले हवाई नक्शे से जोड़ने का श्रेय भी उन्हें ही दिया जाता है। 1994 तक नरसिम्हा राव मंत्रिमंडल में विद्याचरण पावरफुल मंत्री रहे। लेकिन, नरसिम्हा राव सरकार के पतन के बाद छत्तीसगढ़ का केंद्रीय मंत्री का कोटा ही खतम हो गया। वो ऐसे कि नरसिम्हा राव सरकार के बाद कांग्रेस सत्ता से 10 साल बाहर रही। एचडी देवेगौड़ा और इंद्रकुमार गुजराल की सरकार में छत्तीसगढ़ का प्रतिनिधितव जीरो रहा। 1998 से 2004 तक अटलजी की सरकार में अलग-अलग समय में छत्तीसगढ़ से तीन राज्य मंत्री बनाए गए। रमन सिंह, दिलीप सिंह जूदेव और रमेश बैस। मनमोहन सिंह की दूसरी पारी के आखिरी दिनों में चरणदास महंत को केंद्रीय राज्य मंत्री बनने का मौका मिल पाया। 10 साल बाद 2004 में लौटी बीजेपी की सरकार ने विष्णुदेव साय और उनके बाद रेणुका सिंह को राज्य मंत्री बनाया। मगर केंद्र में राज्य मंत्री सिर्फ सहयोगी के तौर पर होते हैं। कह सकते हैं संख्या बल के लिए। जिम्मेदारी और जलवा पूरा कैबिनेट मंत्रियों का रहता है।

सरोज पाण्डेय को मौका?

अब तीन दशक बाद इस बार छत्तीसगढ़ से केंद्रीय मंत्री बनने का योग दिख रहा है। कोरबा से अगर सरोज पाण्डेय जीत गई तो केंद्र में कैबिनेट मंत्री बनने की पूरी संभावना है। क्योंकि, सियासत में महिलाओं की राजनीति में भागीदारी बढ़ रही है। बीजेपी में राष्ट्रीय स्तर पर निर्मला सीतारमण वित्त मंत्री हैं मगर वे मास लीडर नहीं हैं। सुषमा स्वराज के जाने के बाद दिल्ली में सिर्फ स्मृति ईरानी बच गई हैं। ऐसे में, सरोज पाण्डेय का चांस बन सकता है। सरोज चूकि सांसद रह चुकी हैं, विधायक और मेयर भी। महाराष्ट्र की पार्टी प्रभारी समेत राष्ट्रीय स्तर पर कई अहम दायित्व संभाल चुकी हैं। जाहिर है, उन्हें राज्य मंत्री तो नहीं ही बनाया जाएगा।

खतरे में नेताजी का विकेट

छत्तीसगढ़ बनने के बाद एक बड़े नेता दिल्ली में जरूर ट्रेप हो गए थे मगर छत्तीसगढ़ में ऐसा कभी नहीं हुआ। मगर एक नेताजी ऐसे घनचक्कर में फंस गए हैं कि उनकी रात की नींद उड़ गई है। खबर ये है कि 250 करोड़ की सप्लाई में गड़बड़झाला को जिन लोगों ने लीक किया, वे ही लोग नेताजी को भी ट्रेप कर लिए। दरअसल, सप्लाई करने वाला नेताजी को सेट करने गया था कि भाई साब, देख लीजिए...हल्ला न हो और पेमेंट भी जारी हो जाए। मगर जिस बड़े सप्लायर ने इस स्कैम को लीक कराया, उसी ने नेताजी को फंसवा भी डाला...होटल के कमरे में उसी के लोगों ने पहले से कैमरे लगा दिए थे। अब सब कुछ ऑन कैमरा है, तो फिर क्या होगा? यह सवाल उसी तरह का है कि शेर सामने आ जाए तो...? जो करेगा शेर करेगा...अब देखना है लोकसभा चुनाव के बाद क्या होता है।

यादवों का बड़ा नेता

कांग्रेस पार्टी ने भिलाई के विधायक देवेंद्र यादव को बिलासपुर लोकसभा सीट से प्रत्याशी बनाया है। बताते हैं, देवेंद्र यादव को बिहार के नेता चंदन यादव का साथ मिला और राहुल गांधी के साथ पदयात्रा में साथ देने का ईनाम। मगर पैराशूट प्रत्याशी होने का नुकसान उन्हें यह हो रहा कि बिलासपुर में कांग्रेस नेताओं का साथ नहीं मिल रहा है। बिलासपुर के कांग्रेसी इसलिए खफा हैं कि कांग्रेस का गढ़ रहा बिलासपुर में पार्टी को लोकसभा चुनाव लड़ाने के लिए अदद एक प्रत्याशी नहीं दिखा। चलिये रिजल्ट क्या होगा यह देवेंद्र यादव को भी पता है और कांग्रेस के लोगों को भी। फायदा देवेंद्र को यह होगा कि वे छत्तीसगढ़ में यादवों के अब स्थापित नेता हो जाएंगे। और जांच एजेंसियांं के निशाने पर आने से दो-एक महीने की उन्हें मोहलत मिल गई है।

5 निर्दलीय उम्मीदवार

ये बहुत कम लोगों का मालूम होगा कि बस्तर देश की पहली संसदीय सीट है, जहां के वोटरों ने पांच बार निर्दलीय को चुनाव जीता कर दिल्ली भेजा है। यहीं नहीं, 1952 के प्रथम लोकसभा चुनाव में मुचकी कोसा ने देश के सर्वाधिक मतों के अंतर से जीत दर्ज किया था। मुचकी ने एक लाख 41 हजार मतों से कांग्रेस उम्मीवार को पराजित किया था।

ऐसे भी कलेक्टर

लोकसभा चुनाव के आचार संहिता के दौरान कुछ कलेक्टरों ने तहसीलदारों का ट्रांसफर कर दिया। इसको लेकर सीईओ रीना बाबा कंगाले बेहद नाराज हुई। उन्होंने न केवल नोटिस थमाई बल्कि दो-एक कलेक्टरों को फोन पर फटकारा भी। बताते हैं, एक कलेक्टर का मासूमियत भरा जवाब सुन आयोग के अफसर भी सन्न रह गए। कलेक्टर ने कहा, मैं देखता हूं आचार संहिता में तहसीलदारों का ट्रांसफर कैसे हुआ और किसने किया? किसी कलेक्टर के लिए वाकई ये बड़ा शर्मनाक है कि उसे पता नहीं कि नाक के नीचे तहसीलदारों को बदल दिया गया और उसे पता ही नहीं चला। ऐसे कलेक्टरों के जिले में क्या हो रहा होगा, भगवान मालिक हैं।

शिकायत कलेक्टरों की

ये भी कुछ अटपटा सा लग रहा कि बीजेपी की सरकार में बीजेपी नेता कलेक्टरों के खिलाफ शिकायत कर रहे हैं। निर्वाचन आयोग में रायपुर के आसपास के चार-पांच जिलों के साथ ही एक माईनिंग डिस्ट्रिक्ट के कलेक्टर की गंभीर शिकायतें बीजेपी नेताओं ने की है। एक जिले में कांग्रेस के पोस्टर, बैनर हटाने को लेकर इतना रायता फैला कि चुनाव आयोग के अफसरों को देर रात तक जागकर उसे हैंडिल करना पड़ा। बीजेपी नेताओं नें इसकी शिकायत उच्च स्तर पर कर दी, इससे खलबली मच गई। बताते हैं, आचार संहिता नहीं होता तो कलेक्टर की छुट्टी हो गई होती। अब अगर अच्छे मार्जिन से बीजेपी प्रत्याशी की जीत वहां नहीं मिली तो लोकसभा चुनाव के बाद पहले आदेश में कलेक्टर का विकेट उड़ना तय है।

चुनावी ड्यूटी और आईएएस

आईएएस अफसर सबसे अधिक इलेक्शन आब्जर्बर बनने से घबराते हैं। अधिकांश अफसरों की कोशिश होती है कि किसी तरह बच निकला जाए। यही वजह है कि हर बार दो-चार, पांच के नाम कट जाते हैं। मगर इस बार अभी तक दो ही अफसरों के नाम कटे हैं। एक तंबोली अय्यजा फकीरभाई और दूसरा सुधाकर खलको। तंबोली सेंट्रल डेपुटेशन पर दिल्ली चले गए हैं और सुधाकर खलको का एंजिया प्लास्टि हुआ है। इसलिए, सुधाकर के संबंध में चुनाव आयोग ने रिस्क लेना मुनासिब नहीं समझा। बाकी इस बार सिकरेट्री रैंक के अफसर अविनाश चंपावत भी चुनावी ड्यूटी में फंस गए। दरअसल, उनका नाम केंद्र सरकार से गया था। फरवरी तक वे दिल्ली में पोस्टेड थे। यहां ज्वाईन करने के बाद जीएडी ने लिस्ट से नाम हटाने आयोग को पत्र भेजा मगर उस पर सुनवाई नहीं हुई। हालांकि, पहली बार डायरेक्टर एग्रीकल्चर की भी चुनाव में ड्यूटी लग गई है। एग्रीकल्चर डायरेक्टर की पोस्टिंग के चलते जीएडी ने सारांश मित्तर का नाम हटाने आयोग को लेटर भेजा था, मगर आयोग राजी नहीं हुआ।

राजनांदगांव सिरदर्द

राजनांदगांव संसदीय सीट सिर्फ कांग्रेस और बीजेपी के लिए चुनौती नहीं है, चुनाव आयोग के लिए भी सिरदर्द हो गया है। नामंकन दाखिल करने के आखिरी दिन 240 नामंकन फार्म लेने की खबर ने रायपुर सीईओ आफिस से लेकर भारत निर्वाचन आयोग तक को बेचैन कर दिया। इतनी बड़ी संख्या में कोई एक आदमी नामंकन दाखिल नही ंकर सकता। इसके पीछे कोई बड़ा हाथ होगा। आयोग के पास यह फीडबैक पहुंचा था कि कोई महिला विधायक सारे नामंकन भरवा रही है। इस पर तय यह हुआ कि विधायक के खिलाफ एफआईआर दर्ज किया जाए। क्योंकि, कोई लोगों को गोलबंद करके नामंकन नहीं भरवा सकता। मगर शाम होते तक वो हो नहीं पाया जिसकी बड़ी चर्चा थी। राजनांदगांव में नेता प्रतिपक्ष चरणदास महंत के हेट स्पीच को लेकर भी आयोग ने सीईओ आफिस से रिपोर्ट मांगी और फिर कार्रवाई का आदेश दिया। सीईओ आफिस को उसे भी तामिल कराना पड़ा। जाहिर है, राजनांदगांव को लेकर आयोग को काफी मगजमारी करनी पड़ रही है।

अंत में दो सवाल आपसे

1. ऐसा क्यों कहा जा रहा कि लोकसभा चुनाव के बाद मंत्रिमंडल के पुनर्गठन में तीन विधायकों को मंत्री बनने का अवसर मिलेगा?

2. क्या ये सही है कि आपसी सिर फुटौव्वल के चलते चार महीने पहले तक सरकार में रही कांग्रेस पार्टी की छत्तीसगढ़ में दुर्दशा हो रही है?


शनिवार, 30 मार्च 2024

Chhattisgarh Tarkash 2024: बड़े लोग, बड़ा स्कैम

 तरकश, 31 मार्च 2024

संजय के. दीक्षित

बड़े लोग, बड़ा स्कैम

राज्य सरकार ने जमीनों का गाइडलाइन रेट की छूट को न बढ़ाकर अच्छा काम किया है। इससे किसानों को भी फायदे होंगे। मगर सरकार को ये भी सनद रखना होगा कि भारत माला सड़कों के अगल-बगल की किसानों के अधिकांश जमीनों को नेताओं और नौकरशाहों ने खरीद लिया है। ईडी की विभिन्न जांचों में इस तरफ इशारा भी किया गया है कि कई कलेक्टरों ने जमकर इसमें चांदी काटा है। छत्तीसगढ़ के कई प्रभावशाली नेताओं और कलेक्टरों, अफसरों ने किसानों से सस्ते रेट पर एकड़ में जमीन खरीद लिए और उसे छोटे टुकड़े कर करोड़ों रुपए का मुआवजा ले लिया या मुआवजे के लिए लाइन में हैं। बता दें, भारत सरकार के नई अधिग्रहण नीति के तहत छोटो प्लाटों का मुआवजा चार गुना अधिक मिलता है। कलेक्टरों और नेताओं को चूकि पता होता है कि कहां से सड़क निकलनी है। सो, किसानों को रेट से कहीं अधिक में एकड़ों में जमीन खरीद लेते हैं। और फिर उसे टुकड़ों में बांट अपने नाते-रिश्तेदारों, नौकर, चाकर, पीए, प्यून के नाम पर रजिस्ट्री करवाने का खेला किया जाता है। कायदे से यह सीबीआई जांच का इश्यू हो सकता है। क्योंकि, इसमें अधिकांश बड़े लोगों ने मलाई काटा है और किसान बेचारे ठगे गए हैं। सीबीआई जांच अगर हो गई तो सूबे के कई पूर्व कलेक्टर सलाखों के पीछे होंगे।

बड़े आसामी

छत्तीसगढ़ में पिछले तीन साल साल में अस्पताल और नर्सिंग होम के संचालकों ने भी खूब खेला किया है। पहले जिधर जाओ, पता चलता था कि ये फलां नेताजी की जमीन है तो फलां आईएएस, आईपीएस का फार्महाउस। अब इसमें अस्पताल संचालकों का नाम भी ऐड हो गया है। दरअसल, कोविड में अस्पतालों में क्या हुआ, वह सबको पता है। रोज अटैची में भरकर अस्पतालों से घर पैसे जाते थे। उसे कहीं-न-कहीं इंवेस्ट होना ही था। वे पैसे बिल्डरों के प्रोजेक्ट में लगे या फिर जमीनों में। अभी स्थिति यह है कि रायपुर से 100 किलोमीटर दूर तक रोड पर जमीन नहीं बची है। कोविड के पैसे का ही नतीजा रहा कि बिल्डरों ने महामारी में भी अपना रेट डाउन नहीं किया। क्योंकि, बड़े बिल्डरों के प्रोजेक्ट में पहले मंत्रियों, नौकरशाहों की काली कमाई लगती थी, अब इसमें अस्पतालों की कमाई भी शामिल हो गई है। छत्तीसगढ़ में बिल्डरों को तेजी से फलने-फूलने का रहस्य यही है।

सबसे बड़ी जीत

छत्तीसगढ़ में यह बहुत कम लोगों को पता होगा लोकसभा चुनाव में सबसे बड़ी जीत छत्तीसगढ़ से मिल चुकी है। वो भी निर्दलीय प्रत्याशी की। सीट है बस्तर और चुनाव था 1952 का। तब निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर मुचकी कोसा चुनावी मैदान में थे। उन्होंने कांग्रेस के प्रत्याशी को 1,41,331 मतों से हराया। उस चुनाव में सबसे छोटी जीत पश्चिम बंगाल में कांग्रेस प्रत्याशी को मिली थी। कोंतई संसदीय सीट से वे 127 मतों से जीते थे। बता दें, आजादी के बाद देश में पहला लोकसभा चुनाव 1952 में हुआ था।

कांग्रेस का बी फार्म

कांग्रेस में टिकिट का ऐलान होने के बाद चेहरे बदल जाने के अनेक दृष्टांत हैं। कई बार तो बी फार्म भी बदल जाते हैं। विधानसभा चुनाव-2023 के दौरान इसी कॉलम में बिलासपुर विधानसभा चुनाव-1998 में नामंकन के आखिरी दिन बी फार्म बदलने का जिक्र किया किया गया था। उसमें नामंकन भरने के आखिरी दिन बी फार्म बदलकर चार्टर प्लेन से नया बी फार्म आया था। 2009 के लोकसभा चुनाव में बिलासपुर संसदीय सीट से कांग्रेस ने आशीष सिंह का नाम की घोषणा कर दी थी। कांग्रेस पार्टी का अधिकृत आदेश मीडिया में प्रकाशित भी हो गया। मगर दो दिन बाद रेणू जोगी को मैदान में उतार दिया गया। इसी तरह का एक पुराना किस्सा नेता प्रतिपक्ष चरणदास महंत का भी है। 1991 में महंत को जांजगीर लोकसभा से चुनाव लड़ने बी फार्म आ गया था। मगर नामंकन भरने के दिन दिल्ली से उनके पास फोन आ गया...अभी फार्म मत भरिये, भवानीलाल वर्मा को टिकिट दिया जा रहा है। और फिर रातोरात सड़क मार्ग से वर्मा के नाम से बी फार्म भेज दिया गया। अब आजादी के बाद कांग्रेस ने 70 बरस राज किया है, तो जाहिर तौर पर किस्से-कहानियां उसे के होंगे न।

मंत्रियों की मुश्किलें

लोकसभा चुनाव में छत्तीसगढ़ के मंत्रियों की प्रतिष्ठा भी दांव पर लगी है। क्योंकि, तीन महीने हुए विधानसभा चुनाव में जांजगीर और राजनांदगांव को छोड़कर लगभग सभी इलाकों मेंं बीजेपी को ठीकठाक रिस्पांस मिला। अब अगर कुछ गड़बड़ हुआ तो सवाल खड़े होंगे ही। जाहिर है, कुछ संसदीय सीटों के नतीजे मंत्रियों के भविष्य तय करेंगे। मंत्रिमंडल में अभी एक सीट खाली है। और 4 जून को बृजमोहन अग्रवाल के जीतने पर एक सीट और खाली हो जाएगी। अगर किसी और मंत्री के इलाके में लोकसभा चुनाव के परिणाम अच्छे नहीं आए तो फिर पार्टी परफारमेंस का रिव्यू करेगी ही। वैसे भी सियासी गलियारों में अटकलबाजी चल रही कि लोकसभा चुनाव के बाद दो-एक पुअर परफारमेंस वाले मंत्रियों को किनारे किया जा सकता है। हालांकि, इतनी जल्दी मंत्रिमंडल में सर्जरी होती नहीं, फिर भी नरेंद्र मोदी और अमित शाह के युग में कुछ भी संभव है।

इन तीन सीटों पर नजर

छत्तीसगढ़ की 11 में से नौ लोकसभा सीटें इस समय सत्ताधारी पार्टी के पास है। कांग्रेस के पास सिर्फ दो सीटें कोरबा और बस्तर है। देश और राज्य में जिस तरह का माहौल है और कांग्रेस चुनाव को लेकर जिस तरह डिफेंसिव है, उससे नहीं लगता कि बीजेपी की सीटें कम होंगी। अलबत्ता, बढ़ भी सकती है। फिर भी सूबे की तीन सीटों के नतीजों पर लोगों की निगाहें टिकी रहेंगी। पहला राजनांदगांव, दूसरा कोरबा और तीसरा कांकेर। राजनांदगांव से खुद पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल चुनाव मैदान में हैं। तीन महीने पहले तक भूपेश मुख्यमंत्री थे। जमीनी नेता भी हैं। उपर से बीजेपी ने संतोष पाण्डेय को रिपीट किया है। संतोष का भी कुछ-न-कुछ एंटी इंकाबेंसी होगा ही। कोरबा में ज्योत्सना महंत को कांग्रेस ने रिपीट किया है तो बीजेपी ने दुर्ग से सरोज पाण्डेय को कोरबा भेजा है। याने एक का एंटी इंकाबेंसी और दूसरा बाहरी। ऐसे में, मुकाबला दिलचस्प होगा। कांकेर में बीजेपी के भोजराम नाग के खिलाफ कांग्रेस ने बीरेन ठाकुर को उतारा है। बीरेन 2019 के लोकसभा चुनाव में पांचेक हजार के मामूली अंतर से हारे थे। ऐसे में इन तीनों सीटों पर लोगों की नजरें रहेंगी ही, सत्ताधारी पार्टी को भी इन सीटों पर एक्सट्रा वर्क करना होगा।

अंत में दो सवाल आपसे

1. क्या ये सही है कि लोकसभा चुनाव के बाद ईओडब्लू बड़ी कार्रवाई करते हुए कुछ रसूखदार लोगों को तलब करने वाली है?

2. लोकसभा चुनाव के बाद परफारमेंस के आधार पर अगर दो-एक मंत्रियों का ड्रॉप किया गया, तो वे कौन होंगे?


बुधवार, 27 मार्च 2024

Chhattisgarh Tarkash 2024: लोकसभा चुनाव और 2 नेताओं का भाग्योत्कर्ष

 तरकश, 24 मार्च 2024

संजय के. दीक्षित

लोकसभा चुनाव और 2 नेताओं का भाग्योत्कर्ष

लोकसभा का टिकिट मिलने से मंत्री बृजमोहन अग्रवाल कितने खुश हैं ये तो पता नहीं। मगर छत्तीसगढ़ के तीन शीर्ष नेताओं के भाग्योत्कर्ष में लोकसभा चुनाव की बड़ी भूमिका रही है। छत्तीसगढ़ बनने से पहिले 1998 में अजीत जोगी शहडोल संसदीय सीट से चुनाव लड़े और पराजित हो गए थे। मगर उनकी हार में छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री की कुर्सी छिपी हुई थी। जरा सोचिए, जोगी अगर शहडोल से चुनाव जीत गए होते तो उन पर मध्यप्रदेश का लेवल लग जाता। और फिर दूसरे राज्य का एमपी छत्तीसगढ़ का सीएम कैसे बनता? याने जोगीजी के लिए शहडोल इलेक्शन लकी रहा। उसके बाद वे 99 में रायगढ़ संसदीय सीट से चुनाव लड़े और जीते। फिर इसके दो साल बाद राज्य बना तो प्रथम मुख्यमंत्री अपाइंट हुए। इसके बाद डॉ0 रमन सिंह। कवर्धा से चुनाव हारने के बाद वे खाली थे। पार्टी ने 99 के इलेक्शन में उन्हें राजनांदगांव सीट से कांग्रेस के दिग्गज नेता मोतीलाल वोरा के खिलाफ चुनावी रण में उतारा। वोरा मध्यप्रदेश के दो बार मुख्यमंत्री, यूपी के राज्यपाल और केंद्र में कई विभागों के मंत्री रह चुके थे। ऐसे हाईप्रोफाइल नेता को चुनाव में पटखनी देने का इनाम रमन सिंह को मिला और उन्हें केद्र में राज्य मंत्री बनाया गया। इसके बाद फिर छत्तीसगढ़ में पार्टी प्रेसिडेंट और उसके बाद 2003 में मुख्यमंत्री। कहने का आशय यह है कि अगर रमन सिंह ने लोकसभा चुनाव नहीं जीते होते तो मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचने का मार्ग प्रशस्त नहीं हुआ होता। जोगी और रमन के अलावे छत्तीसगढ़ में एक दिग्गज नेता ऐसे हुए, जो लोकसभा चुनाव के जरिये देश में अपने साथ रायपुर, महासमुंद और छत्तीसगढ की पहचान स्थापित किए। करीब 45 साल की सियासत में विद्याचरण शुक्ल ने कभी विधानसभा चुनाव नहीं लड़ा। हमेशा लोकसभा चुनाव में किस्मत आजमाए और आठ बार संसद में पहुंचे। उस समय कांग्रेस के पास विधायकों की फौज होती थी, मगर दो बार हारने के बाद भी विद्या भैया ने कभी पिछले दरवाजे याने राज्यसभा में जाने का प्रयास नहीं किया।

मंत्री का रांग नंबर

खटराल पीएस के चक्कर में एक मंत्रीजी बोल्ड होने से बाल-बाल बच गए। दरअसल हुआ ये कि पीएस चाह रहे थे कि सीमेंट कंपनी वाले उनकी खुशामद करें। मगर उसने पीएस को लिफ्ट नहीं दिया। सो, उन्होंने मंत्री के दिमाग में भर दिया कि पहले वाली सरकार में फलां सीमेंट प्लांट वाला बड़ा ध्यान रखता था और अब रिस्पांस नहीं दे रहा है। मंत्रीजी ठहरे सीधे-सादे...बोले, मंत्री को क्या समझ रखा है, बुलाओ उसके अफसरों को। मंत्रीजी के यहां सीमेंट प्लांट के सबसे बड़े अफसर सिर लटकाए पेश हुए। मंत्रीजी बोले...मैं आपसे बात नहीं करूंगा, अपने मालिक से बात कराओ। अब अफसर न मंत्रीजी को ना कर सकता था और ना ही मालिक से सीधे बात। सीमेंट कंपनी के मालिक देश के नामी उद्योगपति हैं, अफसर सीमेंट प्लांट जैसी छोटी यूनिट के हेड। भला इतने बड़े इंड्रलिस्ट से कैसे बात कर सकते थे। यह बात बीजेपी के एक बड़े नेता के कान तक पहुंची। उन्होंने मंत्रीजी को बुलाकर समझाया, ऐसे रांग नंबर डायल करोगे तो निबट जाओगे। असल में, उद्योगपति इतने बड़े लेवल के हैं कि पीएम और गृह मंत्री के नीचे शायद ही किसी से बात करते हो। अब मंत्रीजी उनसे बात कर रौब झाड़ते तो समझना बड़ा आसान है कि उनका फिर क्या होता।

अब ट्रांसफर नहीं

छत्तीसगढ़ में लोकसभा चुनाव का ऐलान होते तक ट्रांसफर की झड़ी लगी रही। एकबारगी लगा जैसे ट्रांसफर पर से बैन समाप्त होने का लास्ट दिन आ गया है। अव्वल तो ये कि कई विभागों के ट्रांसफर आदेश मीडिया में जारी नहीं हुए...ट्रांसफर करके गुपचुप सर्वसंबंधितों को आदेश भेज दिए गए। इसमें अंदर की खबर यह है कि सरकार भी तबादलों से खुश नहीं है। अधिकांश आदेश रोक दिए गए थे। मगर लोकसभा चुनाव की मजबूरी थी। मंत्री से लेकर नेता तक लगे रिरियाने। कार्यकर्ता काम कैसे करेंगे? नेता लगे महिलाओं टाईप मुंह फुलाने। हालांकि, कार्यकर्ताओं की आड़ में कई विभागों में जमकर खेला हुआ। मगर अब सुनने में आ रहा कि ये लास्ट था। अब जब बैन खुलेगा, तभी इस तरह थोक में तबादले होंगे। उससे पहले बिल्कुल नहीं।

पार्टी में घिरे भूपेश

राजनांदगांव संसदीय सीट से कांग्रेस ने पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को उतारकर मुकाबले को हाई प्रोफाइल बना दिया है। मगर भूपेश पर बीजेपी से ज्यादा घर के भीतर से हमले हो रहे हैं। वो भी सार्वजनिक ढंग से। घायल फिल्म का उस डायलॉग की तरह। सन्नी देयोल के घायल में एक मशहूर डायलॉग था...पिंजरे में बंद शेर को बच्चे भी फल्ली फेंक कर मारते हैं। बहरहाल, विडंबना है कि छत्तीसगढ़ में कांग्रेस को चुनाव लड़ने वाले चेहरों का टोटा है वहीं, जहां पार्टी मुकाबले में है, वहां पुराना हिसाब चूकता करने की सियासत हो रही है। असल में, कांग्रेस नेताओं को डर इस बात का भी है कि राजनांदगांव चुनाव से भूपेश बघेल की सियासी हैसियत कहीं बढ़ न जाए। ऐसे में, भूपेश के लिए डगर कठिन है।

वन ईयर पोस्टिंग

राज्य सरकार ने सूचना आयोग में खाली चार पदों में से दो पर नियुक्ति कर दी। इनमें से दो पद 2022 में खाली हुए थे और दो पद चार दिन बाद 28 मार्च को खाली हो जाएंगे। पिछली सरकार ने मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्त का विज्ञापन किया था मगर तब प्रॉसिजर कंप्लीट होने के बाद भी नियुक्ति नहीं कर पाई और आचार संहिता लग गया था। बीजेपी की सरकार ने 28 मार्च को खाली हो रहे दो सूचना आयुक्तों के लिए विज्ञापन किया था। मगर सही कंडीडेट नहीं मिलने की वजह से मुख्य सूचना आयुक्त की पोस्टिंग नहीं की गई। यही नहीं, चार में से सिर्फ दो पदों पर नियुक्ति हुई है। रिटायर आईएएस नरेंद्र शुक्ला को सूचना आयुक्त बनाया गया है। नरेंद्र शुक्ला का कार्यकाल सबसे छोटा सिर्फ एक साल दो महीने का होगा। क्योंकि, अगले साल वे 65 वर्ष के हो जाएंगे। यह पहली बार होगा, जब इतने कम समय के लिए किसी सूचना आयुक्त की नियुक्ति हुई होगी। चलिए, अच्छा है, अगले साल एक वैकेंसी और हो जाएगी। याने दावेदारों की उम्मीदें बनी रहेंगी।

छत्तीसगढ़ के अमिताभ?

आरपी मंडल के रिटायर होने के बाद अमिताभ जैन नवंबर 2020 में छत्तीसगढ़ के चीफ सिकरेट्री अपाइंट किए गए थे। अमिताभ का टेन्योर सवा तीन साल से ज्यादा हो गया है। उनसे पहिले बीजेपी सरकार में ही विवेक ढांड पूरे चार साल सीएस रहे। रमन सिंह के सीएम रहने के दौरान डीएस मिश्रा और एमके राउत लाख प्रयास करते रहे मगर ढांड की कुर्सी को हिला नहीं पाए। लंबा कार्यकाल में दूसरे नंबर पर हैं पी जाय उम्मेन। वे सवा तीन साल सीएस रहे। अमिताभ अब उन्हें क्रॉस कर गए हैं। याने ढांड के बाद दूसरे नंबर पर। अमिताभ का अगले साल मई में रिटायरमेंट है। इससे पहले, इसी साल नवंबर में उनका चार साल हो जाएगा। याने इस साल नवंबर में वे ढांड का रिकार्ड ब्रेक कर देंगे। ढांड की तरह अमिताभ भी माटी पुत्र हैं। दल्लीराजहरा के रहने वाले अमिताभ मध्यप्रदेश हायर सेकेंड्री बोर्ड में मेरिट में टॉप आए थे। दो बार वे सेंट्रल डेपुटेशन कर चुके हैं। भारत सरकार में रहने के दौरान लंदन में भी पोस्टेड रहे।

चुनौतीपूर्ण पोस्टिंग

छत्तीसगढ़ कैडर के एक आईएएस अफसर को एक बड़ी चुनौतीपूर्ण पोस्टिंग मिली है। उनके लिए दुनिया की सीमा कोई मायने नहीं रखेगी। इस विभाग में आमतौर पर आईपीएस ज्यादा जाते हैं। क्योंकि, आईपीएस के नेचर का ये काम है। मगर प्रतिनियुक्ति पर चल रहे आईएएस अधिकारी अपनी इच्छा से इस विभाग में गए हैं। यह पोस्टिंग काफी संवेदनशील मानी जाती है लिहाजा, उसका नाम नहीं लिखा जा सकता।

सचिवों की पोस्टिंग

अप्रैल के फर्स्ट वीक में सेंट्रल डेपुटेशन से दो आईएएस अफसर छत्तीसगढ़ लौटेंगे। इनमें ऋचा शर्मा और सोनमणि बोरा शामिल हैं। ऋचा एसीएस लेवल की हैं तो सोनमणि प्रिंसिपल सिकरेट्री। दो सीनियर सिकरेट्रीज के आने पर उनकी पोस्टिंग के लिए एक और प्रशासनिक सर्जरी की जाएगी। इसके लिए कुछ सचिवों के पास अतिरिक्त प्रभार है, उसे कम किया जाएगा। छत्तीसगढ़ में सचिवों की संख्या जिस तरह बढ़ रही है, उससे आने वाले समय में वे विभागों के लाले पड़ जाएंगे। याने नीचे लेवल पर अब सचिवों को अब एकाध विभागों से संतोष करना पड़ेगा। वरना, पिछले डेढ़ दशक से अधिकांश सचिव दो-दो, तीन-तीन विभाग संभालते रहे।

अंत में दो सवाल आपसे

1. छत्तीसगढ़ में संघ और संगठन में से इस समय किसका पौव्वा भारी चल रहा है?

2. मुख्यमंत्री की दौड़ में आगे चलने वाले उप मुख्यमंत्री अरुण साव सियासत में पीछे कैसे हो रहे हैं?


शनिवार, 16 मार्च 2024

Chhattisgarh Tarkash 2024: मंत्रियों को इतनी जल्दी क्यों?

 तरकश, 17 मार्च 2024

संजय के. दीक्षित


मंत्रियों को इतनी जल्दी क्यों?

लोकसभा चुनाव के ऐलान से पहले छत्तीगसढ़ में ऐसे ट्रांसफर हुए कि लगा जैसे तबादलों पर से बैन हट गया हो। जाहिर है, बैन जब हटता है तो आखिरी दिनों में ऐसे ही आर्डर निकलते हैं। डेढ़ दिन वैसा ही कुछ रहा। इलेक्शन कमीशन के प्रेस कांफ्रेंस की खबर आते ही आदेशों की झ़ड़ी लग गई। सीईसी राजीव कुमार की पीसी होती रही और आदेश निकलते रहे। आखिर, दो महीने की बात थी। अप्रैल और मई तक ही तो वेट करना है। 4 जून को काउंटिंग हो जाएगी। पर मंत्रीजी लोग धीरज नहीं रख पाए। बृजमोहन जी लोकसभा चुनाव लड़ रहे हैं, मगर बाकी मंत्रियों को तो कोई दिक्कत नहीं। मंत्रिमंडल में सर्जरी की कोई आशंका भी नहीं। इतनी जल्दी सर्जरी होती भी नहीं। फिर मंत्रियों की हड़बड़ी लोगों को समझ में नहीं आई। अरे भाई, दो महीने बाद सरकार भी रहेगी और आप भी मंत्री रहेंगे, फिर ट्रांसफर को लेकर इतनी बेचैनी क्यों? सरकार की साख को इससे धक्का पहुंचता है।

छत्तीसगढ़ के सियासी योद्धा

छत्तीसगढ़ में तीन ऐसे सियासी योद्धा रहे हैं, जिनकी लोकप्रियता ऐसी थी कि पार्टी ने उन्हें सीट बदल-बदलकर लोकसभा चुनाव लड़ाया और वे जीते भी। नेता थे विद्याचरण शुक्ल, अजीत जोगी और दिलीप सिंह जूदेव। हालांकि, विद्याचरण शुक्ल के चलते महासमुंद संसदीय सीट को देश में पहचान मिली...इस सीट से वे पांच बार सांसद चुने गए। मगर वे रायपुर और उससे बहुत पहले बलौदा बाजार से भी चुनाव लड़े और जीते थे। इसी तरह अजीत जोगी मरवाही से चार बार विधायक रहे ही शहडोल, रायगढ़ से एक-एक बार और महासमुंद सीट से दो बार चुनाव लड़े। रायगढ़ और महासमुद लोकसभा सीट से एक-एक बार जीते भी। इसके बाद अब दिलीप सिंह जूदेव। जूदेव की लोकप्रियता का ग्राफ छत्तीसगढ़ में सबसे उपर रहा। वे ऐसे लीडर थे, जो जशपुर से 300 किलोमीटर दूर जांजगीर और बिलासपुर लोकसभा सीट से चुनावी रण में उतरे और अच्छे-खासे मतों से विजयी हुए। मगर अब छत्तीसगढ़ में इस कद के न नेता बचे और न उनकी लोकप्रियता है और न वैसा सियासी इच्छाशक्ति। छत्तीसगढ़ एक्सप्रेस के जरिये भूपेश बघेल ने जरूर इस ट्रेक पर चलने की कोशिश की, मगर वे डिरेल्ड हो गए।

अभी मैं कलेक्टर...

छत्तीसगढ़ बनने से दो साल पहले 1998 की बात है। तब लोकसभा का चुनाव हुआ था और अटलजी की 13 महीने की सरकार बनी थी। उस दौरान रायगढ़ लोकसभा सीट से कांग्रेस से अजीत जोगी मैदान में थे और उनके सामने बीजेपी से नंदकुमार साय। रायगढ़ के कलेक्टर थे शैलेंद्र सिंह। चुनाव प्रचार के दौरान शैलेंद्र ने कांग्रेस की कुछ गाड़ियों को जब्त करवा दिया। बताते हैं, अजीत जोगी ने उन्हें फोन किया। कलेक्टर ने नियमों का हवाला दिया तो जोगीजी भड़क गए। उन्होंने कहा, नियम-कायदा मैं भी जानता हूं, मैं भी कलेक्टर रहा हूं। शैलेंद्र काफी तेज-तर्रार आईएएस थे। उन्होंने यह कहते हुए फोन डिसकनेक्ट कर दिया कि आप कलेक्टर रहे हैं और मैं अभी हूं। हालांकि, जोगीजी बेहद कम मार्जिन, यही कोई पांचेक हजार मतों से चुनाव जीत गए। मगर छत्तीसगढ़ में जब कांग्रेस की सरकार बनी तो शैलेंद्र सिंह को पहले आर्डर में ही बिलासपुर कलेक्टर से मंत्रालय में बिना विभाग का डिप्टी सिकरेट्री बना दिया गया था। बहरहाल, अब ऐसे दम वाले कलेक्टरों का नस्ल विलुप्त हो गया। खासकर, छत्तीसगढ़ में।

लिफाफे में 300

एक सांसद से उनके संसदीय क्षेत्र के मतदाता इसलिए नाराज हैं कि वे शादी, छठी, बरही में जाते हैं तो उनके लिफाफे से 300 रुपए से ज्यादा निकलता नहीं। कभी-कभार ही 500 होता है, जब सांसद जी किसी बड़े आदमी के यहां जाते हैं। अब इस जमाने में तीन सौ का क्या मोल? सामान्य आदमी बड़े नेताओं को अपने घरेलू कार्यक्रमों में बुलाता है तो उसका उद्देश्य रुतबा बढ़ाना तो होता ही है मगर एक उम्मीद भी होती है कि नेताजी ने कुछ ठीक-ठाक ही किया होगा। बहरहाल, 300 वाले मुद्दे ने नेताजी का ग्राफ काफी गिरा दिया है। चूकि पार्टी ने उन्हें टिकिट दे दिया है तो उसे सीट निकालने के लिए अतिरिक्त मेहनत करनी होगी। वरना, खतरा मुंह बाये खड़ा है।

2005 बैच हुआ ताकतवर!

हर दौर में ब्यूरोक्रेसी का एक-दो बैच हमेशा प्रभावशाली रहा है। जैसे अभी विष्णुदेव साय सरकार में आईएएस, आईपीएस के 2005 बैच का जादू चल रहा है। अधिकांश महत्वपूर्ण जगहों पर इस बैच के अफसर विराजमान हैं। सीएम सचिवालय में 2005 बैच के आईपीएस राहुल भगत सिकरेट्री हैं तो अब उन्हें सुशासन विभाग की अतिरिक्त जिम्मेदारी दी गई है। 2005 बैच के आईएएस मुकेश बंसल फायनेंस सिकरेट्री के साथ ही जीएसटी और जीएडी संभाल रहे हैं। पिछले दो सालों को छोड़ दें फायनेंस में डीएस मिश्रा, अजय सिंह, अमिताभ जैन जैसे एसीएस लेवल के आईएएस रहे हैं। 2005 बैच की संगीता आर. आवास और पर्यावरण विभाग की सिकरेट्री के साथ ही पौल्यूशन बोर्ड की चेयरमैन का दायित्व संभाल रही हैं। इन पदों पर कभी बैजेंद्र कुमार और अमन सिंह जैसे अफसर रहे हैं। इसी बैच के आईएएस एस, प्रकाश के पास ट्रांसपोर्ट कमिश्नर के साथ सिकरेट्री की भी जिम्मेदारी हैं। तो राजेश टोप्पो सिंचाई संभाल रहे हैं। 2005 बैच के आईपीएस अमरेश मिश्रा रायपुर पुलिस रेंज के आईजी के साथ ही ईओडब्लू, एसीबी के आईजी हैं। कुछ दिनों में वे इन दोनों जांच एजेंसियों के चीफ बन जाएंगे। वैसे, ये बैच कांग्रेस शासन काल में जरूर हांसिये पर रहा मगर बीजेपी के समय इन सभी अफसरों के पास अच्छे पोर्टफोलियो रहे।

ऋचा को फारेस्ट या हेल्थ?

1994 बैच की एसीएस रैंक की आईएएस अफसर ऋचा शर्मा का सेंट्रल डेपुटेशन समाप्त हो गया है। रिलीव होने के बाद वे अभी अवकाश पर हैं। अप्रैल के फर्स्ट वीक में वे लौटेंगी। ऋचा भारत सरकार में वन और जलवायु परिवर्तन में ज्वाइंट सिकरेट्री रह चुकी हैं। सो, ब्यूरोक्रेसी में चर्चा है कि उन्हें फारेस्ट सिकरेट्री बनाया जाएगा या फिर हेल्थ सौंपा जाएगा। रेणु पिल्ले के हटने के बाद मनोज पिंगुआ को सरकार ने अभी हेल्थ की जिम्मेदारी सौंपी है। गृह, जेल के साथ वन तथा स्वास्थ्य। जाहिर है, ये तीनों काफी बड़े विभाग हैं...एक सिकरेट्री के लिए ये कतई संभव नहीं। सो, समझा जा रहा है, मनोज को टेम्पोरेरी तौर पर हेल्थ दिया गया है। ऋचा के लौटने पर मनोज का वर्क लोड कम किया जाएगा। अब देखना है कि ऋचा को हेल्थ का दायित्व मिलता है या फिर फॉरेस्ट का।

आईएएस का वर्चस्व

पिछला पांच साल डिप्टी कलेक्टरों और प्रमोटी आईएएस के लिए स्वर्णिम युग रहा। पहली बार ऐसा हुआ कि डीए में हमेशा आगे रहने वाले स्टेट वालों से आठ परसेंट पीछे हो गए थे। मगर अब स्टेट वाले पीछे हो गए और ऑल इंडिया सर्विस वाले केंद्र के बराबर पहुंच गए हैं। यहीं नहीं, पोस्टिंग में भी यह झलक रहा है। बड़े-बड़े विभागों में बैठे राज्य प्रशासनिक सेवा या प्रमोटी आईएएस की जगह अब आरआर वाले ले रहे हैं। मंत्रालय में तीन महीने पहले तक पांच प्रमोटी आईएएस सिकरेट्री थे, अब सिर्फ एक नरेंद्र दुग्गे बचे हैं। पिछली सरकार में अच्छी पोस्टिंग की वजह से साइडलाइन किए गए आईएएस भी वापिस लौट रहे हैं। सारांश मित्तर, पुष्पेद्र मीणा, विनीत नंदनवार को स्वतंत्र प्रभार मिल गए हैं। विनीत एपीओ याने अवेटिंग पोस्टिंग आर्डर से सीधे ब्रेवरेज कारपोरेशन के एमडी बन गए हैं। हालांकि, उनके विरोधियों ने दंतेवाड़ा कलेक्टर रहने के दौरान मां दंतेश्वरी मंदिर कारिडोर में घपले घोटाले की मुहिम चलवाकर उन्हें दंतेवाड़ा से हटवाया था मगर जांच में ऐसा कुछ मिला नहीं। लगता है, दंतेश्वरी माई की कृपा विनीत पर हुई है। वरना, एपीओ से सीधे...।

नॉट प्रमोटी आईएएस

सामान्य प्रशासन विभाग के राज्य प्रशासनिक सेवा शाखा में 2013 में शहला निगार स्पेशल सिकरेट्री स्वतंत्र प्रभार रहीं। उसके बाद इस विभाग में कभी आरआर याने रेगुलर रिक्रूट्ड आईएएस नहीं रहे। शहला के बाद करीब तीन साल रीता शांडिल्य इस विभाग की सिकरेट्री रहीं और उनके बाद पिछले सात साल से डीडी सिंह। राप्रेस संघ के विरोध के बाद सरकार ने डीडी सिंह को हटाकर 11 साल बाद डायरेक्ट आईएएस अंबलगन पी को एसएएस शाखा की जिम्मेदारी सौंपी है। सरकार में बैठे लोगों का मानना है कि महत्वपूर्ण प्रशासनिक ढांचे को ठीक करने के लिए आरआर को वहां बिठाया गया है। बता दें, छत्तीसगढ़ में चार सौ से अधिक एसएएस अफसर हैं। और ये सरकार और जनता के बीच के असली सेतु होते हैं।

कलेक्टरों के लिए शर्मनाक

जब छत्तीसगढ़ में बड़े जिले होते थे, तब भी कलेक्टर आफिस में मिल जाते थे। मगर अब दो-दो ब्लॉक के जिले हो गए, उसके बाद कलेक्टर आफिस नहीं आते और आते भी हैं तो अपने हिसाब से कभी वीसी हुआ तो आ गए या फिर मन पड़ा तो दो-एक घंटा बैठ लिए। आलम यह है कि सूबे के मुखिया को कहना पड़ रहा है कि कलेक्टर टाईम से आएं। कलेक्टर, एसपी कांफें्रस में सीएम ने कलेक्टरों से दो टूक कहा कि जब पांच दिन का सप्ताह हो गया है, तो पांच दिन अच्छे से काम करें, 10 बजे आफिस पहुंचे। वाकई! ये कलेक्टरों के लिए शर्मनाक है।

डीएमएफ दोषी?

कलेक्टर कांफ्रेंस में सीएम विष्णुदेव साय ने डीएमएफ को लेकर कलेक्टरों को आड़े हाथ लेते हुए कहा कि मुझे पता है कि पहले के कुछ कलेक्टर डीएमएफ में खूब भ्रष्टाचार किए हैं। उन्होंने कलेक्टरों को वार्निंग दी कि अब डीएमएफ में गड़बड़ी बर्दाश्त नहीं करेंगे। दरअसल, भारत सरकार ने नेताओं की बजाए कलेक्टरों को माइनिंग फंड की जिम्मेदारी इसलिए सौंपी कि कलेक्टर एक अथॉरिटी होते हैं...जिलों में न्यायपूर्ण काम होंगे। मगर छत्तीसगढ़ में डीएमएफ ने कलेक्टरांं को भ्रष्ट बना दिया। पैसा आदमी का दिमाग खराब कर देता है...छत्तीसगढ़ के कई जिलों में कई-कई सौ करोड़ डीएमएफ फंड है। कलेक्टर उसके मालिक होते हैं। कलेक्टरों का एक सूत्रीय कार्य हो गया है कि डीएमएफ के पैसे को कैसे खर्च किया जाए। कलेक्टरों के कंपीटिशन में एसपी भी शुरू हो गए। कलेक्टर जिले का काम इसी गुनतारे में लगे रहते हैं कि डीएमएफ के करोड़ों रुपए को किस मद में खर्च किया जाए कि ज्यादा-से-ज्यादा कमीशन मिल जाए।

अंत में दो सवाल आपसे

1. ट्रांसफर के प्रेशर से घबराए किस-किस विभाग के सिकरेट्री भगवान से गुहार लगा रहे थे, प्रभु जल्दी आचार संहिता लगवा दें?

2. गृह विभाग ने दमदारी से बड़े-बड़े ट्रांसफर किए मगर हफ्ते-दस दिन में ही उसे कई को निरस्त क्यों करना पड़ गया?

शनिवार, 9 मार्च 2024

Chhattisgarh Tarkash 2024: छत्तीसगढ़ में 4000 करोड़ की GST चोरी

तरकश, 10 मार्च 2024

संजय के. दीक्षित

छत्तीसगढ़ में 4000 करोड़ की GST चोरी

इस हेडिंग को पढ़कर आप हतप्रभ होंगे...चोरी वो भी चार हजार करोड़ की। जी, हम जीएसटी की बात कर रहे हैं। छत्तीसगढ़ में 20 हजार करोड़ रुपए जीएसटी से आता है। इसमें पांच हजार करोड़ पेट्रोल, डीजल से। 15 हजार करोड़ अदर बिजनेस से। चोरी अदर बिजनेस में ही होती है। जीएसटी के अफसर मानते हैं कि मोटे तौर पर 25 से 30 फीसदी चोरी होती है। 15 हजार करोड़ के 25 परसेंट के हिसाब से करीब चार हजार करोड़ बैठता है। ये चार हजार करोड़ में से तीन हजार करोड़ छत्तीसगढ़ के करीब 200 बड़े कारोबारियों की जेब में जा रहा है। ठीक ही कहा जाता है, ईमानदारी से ऐसा प्रोग्रेस नहीं होता, जैसा रायपुर में चल रहा। बहरहाल, इस तीन हजार करोड़ से छत्तीसगढ़ में हर साल मैकाहारा जैसे 10 अस्पताल बनाए जा सकते हैं पूरे सेटअप के साथ।

GST में 3 आईएएस

23 साल में पहली बार जीएसटी चोरी करने वाले बड़े लोगों के खिलाफ सरकार ने मुहिम छेड़ी है। छत्तीसगढ़ में रोज छापे पड़ रहे हैं। दो-से- चार करोड़ रुपए रोज सरेंडर किए जा रहे हैं। दुर्ग के एक गुटखा व्यापारी ने कल चार करोड़ मौके पर जमा कराया। इससे समझा जा सकता है कि किस स्तर पर चोरियां हो रही कि उनके लिए चार करोड़ रुपए कुछ भी नहीं। जीएसटी को मजबूत करने के लिए मंत्री ओपी चौधरी ने दिल्ली से मुकेश बंसल को बुलाकर सिकरेट्री बनाया है। रजत बंसल कमिश्नर हैं ही। फर्स्ट टाईम आईएएस प्रतीक जैन को ज्वाइंट कमिश्नर बनाया गया है। प्रतीक आईएएस में आने से पहले इंकम टैक्स में रहे हैं। सो, उन्हें टैक्स चोरी की बारीकियां की जानकारी है। कुल मिलाकर अब जीएसटी चौरी करने वाले बड़े लोगों की खैर नहीं। ओपी के पास खजाने की चाबी है। वे चाहेंगे भी कि ऐसे जीएसटी चोरों पर कार्रवाई कर खजाने के लोड को कम किया जाए।

उदार मंत्री, कलाकार पीएस

छत्तीसगढ़ के विष्णुदेव सरकार के एक मंत्रीजी बेचारे सहज और लो प्रोफाइल के हैं। मगर उनके डिप्टी कलेक्टर ओएसडी उतने ही बड़े कलाकार। मंत्री के यहां पोस्टिंग का जुम्मा-जुम्मा महीना गुजरा होगा कि खेल प्रारंभ कर दिया। करीब दसेक दिन से वे अफसरों को फोन लगाकर पूछ रहे...ट्रांफसर होने वाला है, तुमको कहां जाना है...आपको बस्तर भेजा जा रहा है...फलां जिले के लिए 20 पेटी लगेगा, वहां के लिए 15। मगर आचार संहिता की हडबड़ी में ओएसडी से एक रांग नंबर डायल हो गया। उन्होंने एक ऐसे अफसर को फोन लगा डाला, जो संघ से जुड़े हुए हैं। अफसर ने अपने पृष्ठभूमि के बारे में बताया तो ओएसडी लगे हाथ-पांव जोड़ने...अरे, मैं तो मजाक कर रहा था, पता करने की कोशिश कर रहा था कि मार्केट में कोई गड़बड़ी तो नही हो रही। बताते हैं, सात अधिकारियों से ओएसडी ने एडवांस में 70 पेटी पेशगी ले ली है। मंत्रियों के स्टाफ को लेकर इसी स्तंभ में हमने आगाह किया था कि ठोक बजाकर मंत्रियों के सहायक नियुक्त किए जाएं। सरकार को एकाध कौवा मारकर टांगना चाहिए। वरना, मंत्रियों के ऐसे खटराल सहायकों से नाहक सिस्टम बदनाम होगा।

वो तीन मंत्री

रमन सरकार के 15 बरसों में ऐसा नहीं हुआ कि मंत्रियों के पीए लोगों ने करामात नहीं दिखाया। कई मंत्री ट्रांफसर, पोस्टिंग के चक्कर में काफी बदनाम हुए। मगर तब भी तीन मंत्री अपवाद थे। वह एआई का जमाना नहीं था लेकिन उन मंत्रियों का खुद का इंटेलिजेंस और कमांड इतना तगड़ा था कि उनके इशारे के बिना पत्ता नहीं हिलता था। तीनों मंत्री स्टाफ सलेक्शन में बड़ा सतर्क रहते थे। उन्हें उतने ही फ्रीडम दिया, जितना आवश्यक है। तीन में से दो मंत्री रायपुर और उसके आसपास के थे और तीसरे बिलासपुर संभाग के। इनमें से एक मंत्री ऐसे थे कि दौरे के समय पीए के मोबाइल लेकर चेक कर लेते थे कि किन लोगों के फोन आ रहे हैं और वे किनके संपर्क में हैं। तभी ये तीनों मंत्री ट्रांसफर, पोस्टिंग को लेकर कभी चर्चा में नहीं आए। बहरहाल, जब लहर गिनकर पैसा कमाने वाले पीए और पीएस हैं तो मंत्रियों को अतिरिक्त सजग रहना चाहिए।

ईओडब्लू के नए बॉस

राज्य सरकार ने पहली बार ईओडब्लू टीम की कंप्लीट सर्जरी की है। सरकार ने एक झटके में ढाई दर्जन अधिकारियों और इंस्पेक्टरों को सिंगल आदेश से वापिस बुलाकर करीब उतने ही पोस्टिंग कर दी। जाहिर है, सरकार ईओडब्लू में कुछ नया करने जा रही है। डीएम अवस्थी की जगह नए चीफ की नियुक्ति की चर्चा बड़ी तेज है। डीएम को ईओडब्लू के चीफ बने करीब सवा साल हो गए हैं। इस दौरान शराब घोटाले से रिलेटेड सिर्फ एक छापा पड़ा, जिसमें न कुछ मिलना था और न मिला। हालांकि, पहले टेन्योर में यही डीएम अवस्थी एक साल में 100 करोड़ की अनुपातहीन संपत्तियों को उजाकर किया था। मगर इस बार उनकी जरूर कोई मजबूरियां रही होगी, वरना...। खैर, सरकार अब जिसे ईओडब्लू का चीफ बनाने जा रही, वे निरपेक्ष भाव से काम करने वाले अफसर हैं। उन्हें इसका कोई मतलब नहीं कि फलां बड़ा तोप है, तो फलां बड़ा प्रभावशाली। पोस्टिंग से पहले ही उन्हें बता दिया गया है कि करप्शन का कोई टॉलरेंस नहीं रहेगा...भ्रष्टाचार के मामले में छत्तीसगढ़ की खराब हो गई छबि को दुरूस्त करना है।

आईएएस को एपीओ

राज्य सरकार ने 8 मार्च को सचिव लेवल के आईएएस अफसरों को नई पोस्टिंग की। इनमें राजस्व सचिव भुवनेश यादव से राजस्व, आपदा प्रबंधन और पुनर्वास लेकर उन्हें एपीओ कर दिया। एपीओ मतलब अवेटिंग पोस्टिंग आर्डर। भुवनेश को पोस्टिंग के लिए इंतजार करना होगा। चूकि सामने लोकसभा चुनाव है, सो उसके बाद ही उन्हें कोई विभाग मिलने की संभावना बनेगी। बहरहाल, ब्यूरोक्रेसी में भुवनेश को एपीओ करने की बड़ी चर्चा है। हर आदमी कारण टटोल रहा है। एपीओ करने की एक वजह तो यह बताई जा रही कि निर्वाचन आयोग के निर्देश पर पिछले हफ्ते राजस्व विभाग ने बड़ी संख्या में तहसीलदारों और नायब तहसीलदारों को ट्रांसफर किया। इसकी फाइल समन्वय में नहीं भेजी गई। राजस्व मंत्री टंकराम वर्मा के अनुमोदन के बाद आदेश जारी हो गया। दरअसल, ट्रांसफर पर बैन है। समन्वय के अनुमोदन के बाद ही ट्रांफसर होते हैं। दूसरा, बड़ी संख्या में उठापटक होने से कनिष्ठ प्रशासनिक संघ ने सिस्टम के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था। चीफ सिकरेट्री से लेकर उपर तक इसकी शिकायत की गई। अब कलेक्टर से बड़ा पटवारी होता है तो फिर तहसीलदारों की ताकत का अंदाजा लगाया जा सकता है।

अंत में दो सवाल आपसे

1. एक्स सीएम भूपेश बघेल के राजनांदगांव से चुनाव मैदान में उतरने से क्या वाकई वहां मुकाबल कड़ा हो गया है?

2. सिर्फ जीएडी और गृह विभाग में ही दबाकर क्यों ट्रांसफर हो रहे, बाकी विभागों के गड़बड़ अधिकारी कैसे बच जा रहे?